
- बिपिन कुमार
- 20 Sep 2020
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यात्रीगण कृप्या ध्यान दे "लंगड़ी डायन घरवालों को खाय" रेलवे निजीकरण !
जिस तरह से पिछले दिनों "लॉक डाउन" के दौरान भारतीय रेलवे इधर-उधर भटक रही थी। आमआदमी से ख़ास आदमी की बाहो में जाने की तैयारी में थी तभी से शक और यकीन में बदल गया कि रेल बैरन है। (रेलिया बैरन पिया को लिए जाय रे) "रेलिया बैरन" शायद माताएँ, बहने पहले ही भाप गई थी , अब ऐसे हालात में जब रेलवे पूँजीपतियों के दामन से लिपट चुकी है तो आमआदमी का एक मात्र विकल्प शायद "बुलेट ट्रेन" हो।
शायद नई नवेली बुलेट ट्रेन का अंदाज भी औरो से जुदा हो यात्रीगण की जगह " भक्तगण कृप्या ध्यान दे " ऐसी सम्भावना जताई जा रही है, भाई आखिरकार एक बेवफा से उम्मीद भी क्या कर सकते है आप...? खैर जो भी हो निजीकरण की दुहाई देने वाले शायद ये भूल रहे हैं , रेलवे का परिचालन सामाजिक उद्देश्यो की पूर्ति करना था न कि सिर्फ मुनाफा कमाना। भारत के आखिरी गांव, कस्बे को मुख्य धारा से जोड़ने कि जिम्मेदारी और उद्देश्य के साथ रेलवे का परिचालन हो रहा था, तो क्या अब मुनाफाखोर सामाजिक उद्देश्यो की पूर्ति करेंगे.? ये वैसा ही होगा जैसे कि " बिल्ली को दूध की रखवाली "?
जिस चालू डब्बे में लोग भेड़-बकरी की तरह ठुस्से होते थे उनका क्या..? भारतीय रेलवे आप की संपत्ति है" उन नारों का क्या..? "दूर के ढ़ोल सुहाने "इस मुहावरें को हमने ब्रिटेन की लेबर पार्टी के नेता जेरेमी कॉर्बिन से जोड़ने की कोशिश की है, जो की ब्रिटिश रेलवे को निजीकरण से राष्ट्रीय करण की वकालत कर रहे हैं , ब्रिटेन की जनता का निजीकरण से मोहभंग हो चूका है, "योर गवर्नमेंट पोल्स " के सर्वे के मुताबिक ब्रिटेन की 70% जनता रेलवे का राष्ट्रीकरण चाहती है, इसके पीछे का तर्क है आमआदमी की पहुंच से दूर ब्रिटिश रेलवे, यानि जो गलतियां ब्रिटेन सुधारना चाहता है, हम वही करना चाहते है.?
अब आप अपने देश में प्राइवेट शिछा और प्राइवेट स्वस्थ ब्यवस्था को ही देख लीजिये और अंदाजा लगाइये आने वाला समय कैसा होगा.. ? क्या नई नीतियों से रेलवे का कायाकल्प संभव नहीं, अगर निजीकरण ही एक मात्र विकल्प है तो हर साल देश का एक चौथाई हिस्सा बाढ़ में डूब जाता है तो फिर आपदा प्रबंधन का भी निजीकरण हो ?
आखिरी में कुछ राष्ट्रीय शंस्थानों की खुबिया बता देता हू आप को, खुद मानसिक तौर पर और देश को आर्थिक तौर पे बीमार करने वाले कथाकथित नेता अपना इलाज आल इंडिया मेडिकल कॉलेज में कराते हैं जो की सरकारी है। इन नौटंकी बाजो को कौन बताये "नेशन स्कूल ऑफ़ ड्रामा" भी राष्ट्रीय संस्थान है।
लेखक के बारे में
मानवाधिकार विषय का छात्र
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