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भारत में बाढ़ का इतिहास लगभग हजारों साल पुराना है। जैसा कि इतिहास ग्वाह है मानव सभ्यता की शुरुआत नदियों के किनारे पर हुई। लेकिन पहले बाढ़ का कोई पुख्ता सबूत नहीं है इसलिए हम बात करेंगे आज़ादी के बाद से। आज़ादी के बाद भारत मे पहली बार बाढ़ कब आई, किस पैमाने पर आई, जल जीवन किस तरह प्रभावित हुआ था, बर्बादी का क्या रूप था और तब के नेता और सरकार स्तिथि से निपटने के लिए क्या उपाय किए थे ?

यह सवाल इसलिए तर्कसंगत लगता है की 73 सालों से एक खेल जारी है "चलो बाढ़-बाढ़ खेलते हैं"

भारत विश्व में बाढ़ संभावित और बाढ़ प्रभावित देशो की सूची में दूसरे नम्बर पर है। यानि कि "बाढ़ विश्व गुरु" बनने से सिर्फ एक कदम दूर खड़ा है। क्या हमें इस सूची में विश्व गुरु बनना है ?

हमारे देश के अलग -अलग हिस्से मे हर साल बाढ़ आती है जिसमे देश का एक बड़ा हिस्सा इसकी चपेट में आकर तहस नहस हो जाता है। नेता एरिअल सर्वे करते हैं और फिर हमदर्दी भरा भाषण देते हैं हम मासूमों की तरह सुनते हैं और फ़ूड पैकेट्स के पीछे भागते हुए नेता जी का शुक्रिया भी अदा करते रहते हैं।

अगस्त 2020 की बात करें तो केवल बिहार में बाढ़ से करीब 56 लाख लोग प्रभावित हुए हैं, और 13 जिलों मे बाढ़ का प्रकोप है। इसमें से ज्यादा तर जिलों मे हर साल बाढ़ आती है 56 लाख मनुष्यों के आलावा जो सबसे ज्यादा प्रभावित होता है वो है मवेशी, जिनकी संख्या भी करीब लाखो मे है, एक और आंकड़े की बात करें तो 2017 में जो बाढ़ आई थी उसमे करीब 19 जिले प्रभावित हुए थे और करीब 500 लोगो की जान गई थी। एक करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित हुय थे करीब दस लाख लोगो के घर या तो पानी मे बह गए या ध्वस्त हो गया, 8 लाख एकड़ फसल बर्बाद हुए थे। खैर 2017 में राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से मुआवज़े के रूप मे 7636 करोड़ रूपये मांगे थे लेकिन करीब 1200 करोड़ ही मिल पाए थे।

अब मैं आपको आकड़ो की जाल से बाहर लिए चलता हूँ। यह आँखों देखा किस्सा है जो 22 साल पहले का है। सन 1998 मऊ डिस्ट्रिक्ट उत्तर प्रदेश, अब तक के इतिहास में सदी की सबसे भीषण बाढ़ थी मैं कोई आकड़ा नहीं पेश करूँगा। आप बस इस बात से अंदाजा लगा लीजिये कि उत्तर प्रदेश के इतिहास में यह सदी की सबसे बड़ी तबाही थी। अचानक बाढ़ का पानी लोगो के घरों मे करीब 5 फिट तक पहुंच गया रातों-रात लोगो को गांव छोड़ना पड़ा। लोग जल्दबाजी में जो ज़रूरी सामान ले जा सकता था लेकर भागा। गांव मे ज्यादातर लोग गाय भैंस पालते है उनको भी साथ लेकर निकल पड़े कहाँ जाना है मालूम नहीं ? क्या खाना है मालूम नहीं ? जानवर और परिवार के कुछ सदस्य तो लोग अपने नजदीक के रिस्तेदार के यहां छोड़ आये, बाकि गांव के लोग जिसमे करीब 150 लोगो का परिवार रहता था। तब एक प्राइवेट स्कूल जो की तीन कमरों का था वहां रहने लगे। आप अंदाजा लगा सकते हैं तीन कमरे में करीब 250 से 300 लोगो का रहना खाना, सोना मात्र तीन कमरे में कितना मुश्किल भरा रहा होगा समझ सकतें हैं। फिर भी यह खेल करीब एक महीने तक चला, सरकार की तरफ से मदद के नाम पर तीन चार बार मिट्टी का तेल मिला था वो भी उस समय के शुल्क के साथ ताकि चिराग तले अंधेरा ना हो। कुछ NGO की तरफ से खाने के पैकेट मिले थे लेकिन आखिरी आदमी तक पहुंचते पहुंचते खाने लायक नहीं बचता था, लेकिन जो भी हो NGO ने खूब कोशिश की। गांव में ज्यादातर घर मिट्टी के बने होते थे जो बिगड़ चुके थे।

बाढ़ में बह गये लोगो की फसल ख़तम हो गई भारी जान माल का नुकसान हुआ लेकिन सरकार ने फसल का जो मुआवजा दिआ वो आखिरी आदमी तक ₹20 रूपये से लेकर ₹1000/- के रूप में मिला। मैंने रूपये का सिम्बल इसलिए लगा दिया कहीं आप डालर ना समझ बैठे। प्रशासन इतना सजग और ईमानदार था कि ये मुआवजा पाने के लिए आप के पास बैंक खाता होना चाहिए और घंटो तक लाइन में लगने का समय।

उपर जो 2017 का अकड़ा पेश किया है उसमे बिहार को 1200 करोड़ का मुआवजा मिला है उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा राज्य है और सदी कि सबसे भीषण बाढ़ मुआवजा कितना मिला आप खुद रिपोर्ट देख लीजिये थोड़ी हमने मेहनत की थोड़ा आप भी कीजिये। और बंदर बाट क्या होता है को समझिए। अगर आप सरकार हैं तो यह भी कह सकतें हैं कि बढ़ ज़रूरी है। क्या खोया ? क्या पाया ? इसका दुख नहीं बस चिंता इस बात की है की आज भी उत्तर प्रदेश और बिहार में वही स्थिति है आज़ादी के इतने बरस बाद भी क्या सरकार के पास कोई नीति नहीं है ? या कोई स्थाई समाधान नहीं है ? या फिर मुआवज़ा देने और लेने का यह खेल चलता रहेगा। और फिर आखिरी विकल्प "चलो बाढ़ बाढ़ खेलें "

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