
डि टू डि : ट्रैवल ब्लॉग
दिल्ली से धनबाद: सड़क मार्ग
सुबह के चार बज रहें हैँ अभी भी यही चल रहा है कि कुछ रह तो नहीं गया? लगेज बढ़ते जा रहें हैँ जबकि बड़ी गहन विचार विमर्श के बाद ये फैसला लिया गया गया था कि कम से कम लगेज रखा जायेगा. लेकिन ये भी सच्चाई है कि जैसे नवजात शिशु पुरे रास्ते एक महिला या पत्नी द्वारा हैंडल और केयर किये जाते हैँ कुछ वैसे ही लगेज का ध्यान एक मर्द या पति को रखना पड़ता है. लगेज जैसे-जैसे बढ़ेगा पति के भौहें गहराते जायेंगे. पत्नी को सब पता है, बस एक बार सबकुछ गाड़ी में डल जाए फिर सारी टेंशन पति को. इसलिए माहौल शांत है पति अंदर ही अंदर लाल-पिला हो रहा है. प्लान के मुताबिक़ अब तक नॉएडा के आस पास होना चाहिए था ताकि दिल्ली के ट्रैफिक से बचा जा सके.
भारत कि राजधानी दिल्ली से कोयला राजधानी धनबाद तक 1248 किमी का सफ़र है, सो किसी भी मायने में आसान नहीं है. गाड़ी चलानी हो तब भी और बैठकर जाना हो तब भी. हाँ अगले 24-30 घंटे बड़े अनुभव और रोमांच भरा हो सकता है. दिल्ली कि भीड़-भाड़ और प्रदुषण वाले माहौल से कहीं दूर एक अंडर डेवलपिंग सिटी में जा रहें हैँ जहाँ दिल्ली स्टाइल धीरे धीरे घर कर रहा है. लोगों के खान पान से पहनावा तक बड़ी तेजी से बदल रहा है. लोगों में पैसे खर्च करने कि आदत डलती जा रही है और लोग पुराने ढर्रे से निकालकर खुद को नये रंग में रंगना चाहते हैँ. ये भी बताता चालूँ कि ये बहस का विषय है कि पुराना ढर्रा ज्यादा कारगर है या नया माहौल, नई चीजें, आदतें, दिखावा का भाव और ऐशो-आराम वाली चाहत.
काफी देर हो चुकी है नॉएडा से साथ जानेवाले दो रिश्तेदारों का फ़ोन भी आ रहा है कहाँ पहुंचे? दिल्ली स्टाइल में ज्वाब दे रहा हूँ बस पंहुँचनेवाला हूँ अपना लोकेशन शेयर कीजिए. जबकि सच्चाई में नॉएडा अभी 15 किमी और दूर है. फाइनली सभी लोग कार में बैठ चुके हैँ सामान खचा-खच भर चूका है. एक दूसरे को देखते हुए एडजस्ट कर रहें और कोई किसी को इसके लिए ब्लेम भी नहीं करना चाहता. सभी खुश हैँ और पहली बार अपनी खुद कि कार से अपने घर पहुँचने को उत्साहित हैँ. नॉएडा क्रॉस करते ही आप आगरा एक्सप्रेसवे पर आ जातें हैँ और आपकी गाड़ी हवा से बातें करने लगती है.
हवा हूँ हवा मैं बसंती हवा हूँ....स्कूल बुक कि कविता याद आ जाए तो कोई आश्चर्य कि बात नहीं. भारत वैसे भी विविधताओं के लिए जाना जाता है वैसे में दूसरे बोर्ड वाले शायद इस कविता को याद न भी कर पाएँ.
एकलय में चलती कार और सामने हाईवे पर न ख़तम होनेवाली काली पीच पर सफ़ेद लाइन आपको मोह लेगा. फिर एकाएक आपके मुख से उत्तर प्रदेश सरकार कि तारीफ टपकने लगेगी...... जैसे तारीफ के पूल बांधे ही थे कि पीछे बैठे भाई साहब ने भरभरा कर गिरा दिया. और तेज़ आवाज़ में बोले इसको बनानेवाला अखिलेश यादव तो हार गए थे....आप चुप रहने के अलावा क्या बोलेंगे जनता मालिक है? तेज़ रफ़्तार ने काफी दूर पंहुचा दिया है और मथुरा के साइन बोर्ड दिखने लगे हैँ. सबने बाएँ साइड दिखनेवाले ढाबा में रूककर चाय और नाश्ता करने का फैसला किया है. काफी अच्छा माहौल है यहाँ... आपके कानों में हरे रामा.... हरे कृष्णा के धुन छा जायेंगे और आप कृष्ण भक्ति में डूबे लोगों से मिलेंगे.
ग्रुप में वैसे लोग भी हैँ जो इतने दूर के सफ़र को समझते हैँ और आपको भी इसका एहसास करवाएंगे कि... जल्दी जल्दी रुकना सफ़र को और भी लम्बा और उबाऊ बनाएगा. वैसे में उनके हिसाब से घंटो तक लगातार गाड़ी का चलना ज़रूरी है...
हँसते बोलते मज़ाक करते आप आगरा तक का सफ़र ऐसे पूरा करेंगे कि आपको अपने ड्राइविंग पर गर्व होने लगेगा. अरे 3 घंटे में आगरा वाह!
जैसे ही आगरा कानपुर रष्ट्रीय राजमार्ग पर पंहुचा तो पता चला जाम है वजह किसान आंदोलन. रास्ते को ब्लॉक कर दिया गया है और घंटों खुलने के कोई आसार नहीं है. बेहतर है कोई दूसरा रास्ता चुना जाए.... गाड़ी चलती रहे तो दुरी का उतना नहीं पता चलता. क्योंकि हमलोग लोकल नहीं हैँ और लखनऊ एक्सरेस्सवे को जानेवाली रूट से अनजाने हैँ. कोई भी साफ साफ नहीं बता रहा कि कैसे जाना है.... किसानों से संवेदना है इसलिए ये परेशानी उपेक्षित है.
किसी भाई ने एक सुझाव दिया है कि लखनऊ एक्सप्रेस से जाना अच्छा रहेगा....... टोल महंगा है इसलिए यहाँ खड़ी गाड़ियाँ मार्ग खुलने का इंतज़ार कर रहीं हैँ. हमने वक़्त के नज़ाकत को समझते हुए फटाफट महंगा टोल भरने का फैसला किया और निकल पड़े. सड़क शानदार है लालू स्टाइल में....किसी के गाल कि तरह.
मेरी वाइफ बड़ा खुश है वो इसी बहाने ऐतिहासिक शहर लखनऊ का दर्शन करना चाहती हैँ. लगातार साइन बोर्ड पर लखनऊ कि दुरी को पढ़े जा रहीं हैँ.....घंटो इंतज़ार के बाद जब लखनऊ कि धरती पर पंहुचा तो बड़ी ख़ुशी मिली. कभी नवाबों कि बात तो कभी टुंडे क़वाब कि बात. कोशिश है कि कोई अच्छा सा होटल /रेस्टुरेंट मिल जाए जो टुंडे खिला दे पर ऐसा कुछ दिखा नहीं..... आप आउटर लखनऊ से क्रॉस करतें हैँ वैसे में टुंडे का कोई बोर्ड नहीं दीखता. फिर हम कुछ बड़ी इमारतों कि तारीफ करतें हैँ तो कभी लखनऊ के तहज़ीब कि.
यहाँ तक सफ़र शानदार रहा है..... लेकिन इसी बीच भरे जाने वाले टोल कि बात भी करतें हैँ. क्योंकि पहली बार है इसलिए.... टोल का कोई ख़ास अनुमान भी नहीं है. हर 50-100 किमी पर लाइन मेँ लगने का मतलब हम खुद टोल से जोड़ लेते हैँ. फिर सरकार को लुटेरी लालची बोलकर अपना भड़ास भी निकाल लेते हैँ.
लखनऊ शहर से बाहर निकलते कसबों का झलक शुरू हो जाता है. फिर गाँव और फिर मीलों तक खाली खाली जगह. खेत खलिहान. शहर के जुग्गी झोपड़ी और खचा-खच आबादी से बिलकुल अलग. शांत और प्राकृतिक सुंदरता ओढ़े ये रास्ते आपके हमसफर बन सकतें हैँ.
सामने होरडिंग पर बरेली लिखा आ रहा है. वैसे मेरी वाइफ झुमका मांग पड़ी है वजह राजा मेंहदी अली खान की गीत "झूमका गिरा रे..... बरेली के बाज़ार में.... है.
सच बताऊं तो जैसे जैसे बरेली के अंदर से अंदर जाते रहेंगे आपको पहली बार नेशनल हाईवे कि दैनिय स्थिति पर आलोचक बनने का मौका मिलेगा. सोनिया गाँधी की तस्वीर भी देखने को मिलेगा लेकिन हिचकोले लेते गाड़ी में आपको कांग्रेस कि बुराई पर मजबूर कर देगा. खानदानी सीट का ये हालत पता नहीं.... सांसद निधि का ही इस्तेमाल कर लेतीं. वैसे तो केंद्र और राज्य दोनों में कमल है फिर कांग्रेस के खाते ज्यादा कुछ रहता नहीं लेकिन फिर भी दबाव की राजनीति भी तो कोई चीज है. वैसे भी कांग्रेस से दबाव की उम्मीद नहीं की जा सकती अभी तो कांग्रेस खुद स्थाई अध्यक्ष के दबाव में है.
बरेली की खड्डों ने हमारा खेल ख़राब कर दिया है और मेरी धर्मपत्नी उल्टी पर उल्टी किये जा रहीं हैँ. आस पास कुछ ख़ास रुकने की जगह भी नहीं है वैसे में लोग इलाहाबाद माफ़ कीजिए प्रयाग राज पंहुचने की सलाह दे रहें हैँ. प्रयाग राज का सफ़र ख़त्म ही नहीं हो रहा और इनकी हालत ख़राब हो चुकी है. एक ढाबे पर रुकने का फैसला लिया है पर खाट पर खुल्ले में सोना बड़ा कठीन कार्य है. कुछ देर रुक कर हमलोग रात का भोजन कार रहें हैँ और इनको थोड़ा आराम करने का मौका भी मिल गया है. ढाबे बड़े साधारण स्तर के हैँ और अगर पंजाब चंडीगढ़ वाले रूट जैसे ढाबे का सोच रहें हैँ तो दिमाग से इस ख्याल को निकाल दीजिये वरना हर ढाबे पर आपके चाहत को जोर का झटका लगेगा.
इस दौरान आप जितनी बार प्रयागराज का नाम लेतें हैँ हॉर्डिंग आप पर मुस्कराता हुआ इलाहाबाद दिखा देता है. योगी आदित्यनाथ ने जितनी जल्दी इस शहर के नाम बदलने में दिखाए वो सब सुर्खियों में बने रहने का कार्य ज्यादा लगता है नहीं तो करोड़ो के खर्च को अभी तक रोकते नहीं और सारे साइन बोर्ड बदलवा देते. इलाहाबाद नाम में बुराई ये है कि एक मुस्लिम उदरवादी राजा अकबर के इलाही धर्म से जुडा हुआ है. जो कि आज के हिन्दू राष्ट्रवाद राजनीति को नहीं भाता.
आपको एक सलाह दे दूँ की कै या उल्टि की स्तिथि में गाड़ी चलाने का रिस्क बिलकुल भी ना लें. हम 50 किमी की दुरी तय करने के बाद वापिस इलाहाबाद जा रहें हैँ ताकि ढंग का होटल मिल सके. उल्टि वाले व्यक्ति की हालत बद से बद्तर हो सकता है. इसलिए जल्दी पंहुचने की लालच बिल्कुल भी ना करें.
बड़ी मुश्किल से फाइनली ऑनलाइन खूबसूरत दिख रहे एक होटल में पंहुँच पाया हूँ. लेकिन अंदर घुसते सारी ख़ूबसूरती बदल चुकी है काफी पुरानी बिल्डिंग है जो किसी घर को होटल में तब्दील किया गया है. मैं कोई भी रिस्क नहीं लेना चाहता और इस होटल में रात बिताने का फैसला कर चूका हूँ. घुसते वेलकम डेस्क के बगल में हेल्पर खाट लगाकर सोया है खर्राटे भी भर रहा है. मैनेजर को हम मन मुताबिक पैसा देते हैँ और सबसे बढ़िया वाला रूम पसंद करतें हैँ.
बिस्तर पर लेटते ईश्वर का शुक्रिया किया और कब निद्रा देवी के आगोश में खो गया पता ही नहीं चला. 4 घंटे के नींद के बाद सुबह उठकर जल्दी जल्दी सबको जगा रहा हूँ ताकि यहाँ से धनबाद का सफ़र पूरा किया जा सके. घरवाले खुश हैँ की हमने रात ठहरने का फैसला किया. मेरी माँ अपने बहु की चिंता में डूबे जा रहीं थीं.यहाँ से धनबाद लगभग 530 किमी दूर है वैसे में हमने आधा से थोड़ा ज्यादा सफ़र तय कर लिया है. हमने हल्के फुल्के नाश्ते के बाद अपना सफ़र फिर शुरू कर दिया है.
बनारस से गुजर रहें हैँ और पान को मिस कर रहें हैँ. Youtube को धन्यवाद दे सकतें हैँ क्योंकि वो आपको खइके पान बनारसवाला गाना सुना सकता है. पीएम के लोकसभा सीट से जब आप गुजरतें हैँ तो आपकी उम्मीदें भी ज्यादा रहती हैँ. सच बताऊं तो यहाँ के रष्ट्रीय राजमार्ग पर गाड़ी चलाकर आपको मजा आ जायेगा. फिर बरेली की रेंगति सड़कों के पीछे आपको राजनीतिक खेल का एहसास होगा.
अगले टोल के बाद बिहार शुरू होता है वैसे में कभी बिहार का हिस्सा रहा झारखण्ड आपको घर जैसा एहसास दे सकता है. लेकिन आपको झारखण्ड बॉर्डर घुसने कि जल्दी रहती है सभी लोग उत्साहित हैँ..... बिहार आज भी राजनितिक मायने में वर्तमान में नितीश कुमार का दूसरा नाम है.... लेकिन आप तेजस्वी पर चर्चा ना करें तो सब अधूरा लगेगा. यहाँ के ज्यादातर NH पर निर्माण कार्य चल रहा है वैसे में गाड़ी कि रफ़्तार कम ही रहेगी और सफ़र लम्बा खिंचता दिखेगा. गाड़ी में पेट्रोल ख़त्म होने वाला है सो एक पेट्रोल पंप पर रुकते हैँ पता चला बिजली गुल है इसलिए जनरेटर चालू होने तक इंतज़ार करना पड़ेगा. फिर दिल्लीवाले हैँ तो पेट्रोल प्राइस न पता करें कैसे होगा. पता चला राज्य ग़रीब है लेकिन पेट्रोल के दाम दिल्ली से भी मेंहगा. एक बिहारी भाई ने मेरे रिएक्शन पर बोल पड़े कि "नितीश के पास हइये क्या है राजस्व खतम है दारु बंद है तो सरकार पेट्रोले से थोड़ा बहुत बराबर कर रही है "
अगले टोल के बाद झारखण्ड शुरू है मानो हमने कोई जंग जीत लिया हो. सबके चेहरे पर नेचुरल ख़ुशी आ गई है. लेकिन धनबाद अभी भी 200 किमी से ज्यादा दूर है. यहाँ से सबकुछ ख़ूबसूरत है. कोई शिकायत नहीं. झारखण्ड भी अच्छा झारखण्ड कि सड़कें भी अच्छी. न कोई ठंग का ढाबा है न ही बनारस और आगरा एक्सप्रेसवे जैसी चमकदार सड़क लेकिन शिकायत नहीं है. सभी एडजस्टमेंट में खुश हैँ.
सहरघाटी से ही हरियाली देख सभी खुश हैँ. इतना ख़ूबसूरत कि मन मोहित हो जाए. रात में कोडरमा के आस पास पड़नेवाली घाटी में ड्राइविंग से बचे और दिनोदिन इस दुरी को तय करें. सुरक्षा के लिहाज़ से ये ज़रूरी भी लगता है.
बनारस से ही आपको धनबाद का नाम बड़े बड़े हॉर्डिंग में दिखने लगता है. वैसे में उँगलियों पर गिरते क्रम में किमी कि गिनती चल रही है.
अब चौपारण से गुजर रहें हैँ. आप चौपारण जाएँ और वहाँ से खीरमोहन न खाएं तो आप एक अच्छी चीज और स्वादिष्ट मिष्ठान से वंचित होनेवाले हैँ. ऐसे में खीरमोहन खाने और खरीदने का प्रस्ताव ज़रूर रखें और पूरा करें. मटके में इस मिठाई का कोई ज्वाब नहीं है.
30 घंटे से भी ज्यादा देर के सफ़र के बाद अपने घर धनबाद के प्रांगण में आकर ऐसा लग रहा है मानो जन्नत का एहसास हुआ है. अगले ब्लॉग में ट्रैन और हवाई सफ़र कि बात करेंगे......(किसान आंदोलन कि वजह से मार्ग में आये बदलाव ने घंटो का सफ़र लम्बा कर दिया. इसलिए ध्यान रखें आगरा से कानपुर राजमार्ग सबसे बढ़िया है दिल्ली से धनबाद के सफ़र में.....)
4 Comments
admin
Your Comment is Under Review...!!!
admin
Your Comment is Under Review...!!!
Md Ghulam Sarwar
बेहद शानदार लंबा सफर जरूर था पर आपकी लेखनी बेहद उम्दा मानो हम खुद इस सफर को तय कर रहे हो अभी पिछले साल Nov में कानपुर हाईवे होकर जाना हुआ अच्छा सफर था और आपने ताजा कर दिया आपकी लेखनी और सफर के अनुभव को सलाम।
Pehchan
Safar lamba ho ya chhota Issme koi baat Nahi Kitna yaadgar he Or Kitna Saath he or Kitne khawabo ki Raat he Mera b Kuch aisa hi Safar Raha Agra Ka Jana sa pehchana sa Isiliye kehte he manzil se behtar raaste Nahi lagte Raaste hi to kise ko apna bnate he jise bhool Nahi sakte