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मैं मोहित कौशिक। लम्बा छरहरा बदन वाला। सांवला सा जिसके सिर पर बाल भी कम हैं। लोग पीछे में गंजा भी कहते होंगे। पर मुझे बुरा नहीं लगता। जो है सो है। हमेशा चश्मा लगाये माथे पे तिलक तो याद ही होगा। आज आप सबसे कुछ शेयर करना चाहता हूँ। ज़िन्दगी करवटें बदलती है और आप दूसरे पल खुद को कही और पाते हो। वो बदसूरत या खूबसूरत हो सकता है।

आज मेरा पुरानी कंपनी में दफ़्तर का आखिरी दिन है। एक कंपनी जहां से मैंने काफी कुछ सीखा। चीज़ों को बदलते हुए देखा - कुछ को निखरते हुए, कुछ को संवरते हुए , कुछ को टूटते हुए कुछ को बिखरते हुए, कुछ को आस्मां छूते हुए , कुछ को ज़मीन पर गिरते हुए। कुछ सीख मिली कुछ एक को मैंने भी कुछ सिखाया। नदी के पानी की माफिक हमेशा बहता रहा। ज़िन्दगी में ठहराव होता भी कहाँ है। आदमी दिमाग से पानी ही तो है। एक पल यहाँ दूसरे पल वहां। एक इंसान बता दो जो किसी भी पल किसी न किसी रूप में किसी को छुआ न हो , कही भटका न हो , बदलाव एहसास न किया हो, उसके दिमाग की धमनियों ने कुछ सोचा न हो कुछ माँगा न हो, मनवाया न हो खोया न हो, रोया न हो, रुलाया न हो शायद ऐसा कोई नहीं है।

मैं अपने इस दफ़्तर को शायद कभी भूलूंगा नहीं। मैंने यहाँ लोगों को हँसते देखा है, एक दूसरे से जलते देखा है, बेइंतेहां प्यार करते देखा है। सीढ़ियों पर बैठे घंटों गर्लफ्रेंड से बात करते देखा है। बॉस से झूठ बोलते देखा है। बॉस को झूठ बोलते देखा है। खूबसूरत कस्टमरों को निहारते देखा है। सुपर बॉस के डर से कांपते देखा है। दफ्तर के वक़्त में गर्लफ्रेंड को घुमाते देखा है। डीएसआर न बनाने की दिली तमन्ना को देखा है , न बनने पर खिंचाई होते देखा है। बारिश में भीगने का बहाना ढूंढते देखा है। दफ्तर देर पहुँचने पर नज़रें चुराते देखा है। केसेस पे लड़ते झगड़ते देखा है। टॉप करने पर खुशियाँ मनाते देखा है। बात बात पर एक दूसरे से पार्टी लेने की जोरदार कोशिश देखा है। खुद को इनके बीच पिघलते देखा है। आज जब इनको अलविदा कहने का वक़्त है तब इनके चेहरों पर खुद के लिए प्यार देखा है। मेरी इन खट्टी मीठी एहसास को किसी भी गलत मायने में न ले…… आप सबों को शुक्रिया! "20 अगस्त 2014 ऑफिस के दोस्त के फेयरवेल पार्टी के बाद"

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