
- मोहम्मद असलम
- 26 Jan 2021
- 2M
- 3
गोदी मीडिया में ख़ुशी क्यों? ट्रैक्टर रैली के हिंसात्मक रूप से किसको फ़ायदा, किसको नुकसान?
गोदी मीडिया आज के तारीख़ में सच में किसी पहचान के मुहताज़ नहीं. गोदी मीडिया बोलते सुनते ही ख़ूबसूरत कपड़ो और मेकअप में सजे एंकरों की टोली दिमागी पट्ट पर गुजरने लगतें हैँ. साथ में उन चैनलों के लोगो और नाम भी. आज जब भारत गणतंत्र दिवस पर संविधान की रक्षा के लिए बाध्य और उससे खुद को बंधा हुआ दिखाना चाहती है वैसे में राजधानी दिल्ली और लाल किले पर जो कुछ देखने को मिला वो सच में दुखदायी है. लेकिन सरकार मदमस्त दिखी न कोई ख़ास हबड़ा तबड़ी और न ही कोई ख़ास जल्दबाज़ी. नहीं तो मुठ्ठी भर जगह वाली राजधानी घंटो अराजकता से गुजरे समझ से परे है.
आज से हफ्ता पहले जब दुनिया का सबसे ताक़तवर देश ने अपने लोकतंत्र के मंदिर कैपिटॉल पर एक ख़ास विचारधारा के लोगों द्वारा उपद्रव और उत्पात का दृश्य देखा तो दुनिया भी उसे हतप्रभ देखती रही. मोदी से लेकर दुनिया के बड़े राजनेताओं ने उसकी निंदा भी कि. लेकिन उन उत्पातों के पीछे तब के राष्ट्रपति कि मंशा को वहां के लोगों और विपक्ष ने समझा और महाभियोग तक चलाया गया. मेरे ख्याल से एक मजबूत राष्ट्र ने एक मजबूत उदाहरण पेश किया और सबसे ताक़तवर को कटघरे में खड़ा किया. हमारे यहाँ सिस्टम उल्टा है राजा पर कोई प्रश्न चिन्ह उठाना मतलब खुद को राष्ट्र विरोधी के ठप्पे से चिन्हित करवाना है. हाँ गोदी मीडिया बड़ी जल्दी ये ज़रूर बता देती है कि ये दो नंबर के नागरिक हैँ और कितनी संपत्ति का नुकसान हुआ. और ये भी कि इसकी भरपाई इनसे ही होनी चाहिए.अलग अलग टीवी चैनलों को देखे तो आपको ऐसा लगेगा की जो मीडिया जमिया और जे एन यू पर हल्के फुल्के से थे आज वही एंकर और चैनल्स चीखते चिल्लाते बड़े गुस्से में हैँ. हेडलाइन्स वैसे लिखें गएँ हैँ मानो किसानों से उस बात का बदला ले रहें हैँ जब इन प्रदर्शणों में इनको कई मौकों पर बाइट देने से ये बोलकर मना कर दिया था कि गोदी मीडिया से बात नहीं करनी.
इन चैनलों के बहरूपिये पन को ऐसे भी पहचाना जा सकता है जब इनके आँसू प्रदर्शन में शामिल किसानों कि मौत पर तो सूख जातें हैँ लेकिन सरकार के पक्ष में आँसू वैसे बहता है मानो इनके घाव बड़े गंभीर है. वैसे भी टी आर पी का खेल अर्नब भैया समझा रहें हैँ. लेकिन ध्यान रखिये बबूल के पेड़ से आम का पैदावार कि न सोचे इसलिए इन ज़हरीली चैनलों पर आपको कुछ ठोस सोचने कि ज़रुरत है.
लगभग दो महीने होने को हैँ जब से किसानों ने केंद्र सरकार द्वारा लाये गए कृषि कानून के खिलाफ़ मोर्चा खोल रखा है. इसपर किसान नेताओं और केंद्र के बीच आधा दर्जन से अधिक बार बैठकों का दौर भी चला लेकिन कभी भी मामला एकदम से सुलझता नहीं दिखा. जिन किसानों को सरकार शुरू शुरू में हल्के में ले रही थीं और आश्वासनों के लॉली पॉप से चलता करना चाह रही थी वैसा बिल्कुल भी नहीं हुआ. किसानों ने हर बात-चीत के दौर के बाद पुरे विश्वास से अपनी बात को रखते दिखे और केंद्र की घोड़ा चाल को चेक करते रहे. सरकार भी संयम में दिखी और अंदर ही अंदर चीजों को सँभालने में लगी रही. इसकी एक वजह यह है की सरकार सच में विमूढ़ है और कोई भी रिस्क नहीं लेना चाहती. चुनाव सर पर है वैसे में जिसे ख़ालिस्तानी कहा जा रहा है अगर वो सच में किसान निकले तो मामला बड़ा महंगा साबित हो सकता है. ये कोई सी ए ए के खिलाफ़ प्रदर्शन नहीं है जिसे सीधा मुसलमानो से जोड़ दिया जाए और बहुसंख्यकों से चुनावी फ़ायदा ले लिया जाए. पंजाब वैसे भी भाजपा की झोली से दूर है क्योंकि लोकसभा हो या विधानसभा इनके हाथ कुछ लगता दिख नहीं रहा. और जिस साथी के भरोसे राज कर रहे थे वो किसानों पर केंद्र के रूख से नाखुश होकर आज अलग हैँ. हरयाणा में हुए उप चुनाव ने भी सन्देश दिया है जब अंतरराष्ट्रीय स्तर के पहलवान् को भी बीजेपी नहीं जितवा पायी.
लेखक के बारे में
मोहम्मद असलम, पत्रकारिता से स्नातक हैं। सामाजिक घटनाक्रम और राजनीतिक विषयों में रूचि रखतें हैं। इनके ज्यादातर लेख सोशल मीडिया घटनाक्रम पर आधारित होतें हैं। इसके साथ ही एमबीए डिग्री धारक हैं और एक निजी बैंक में सीनियर मैनेजर के पोस्ट पर कार्यरत हैं।
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3 Comments
admin
Your Comment is Under Review...!!!
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Pehchan
Kissan se agrah karna he Insab se koi hal nahi Sirf aam logo ko pareshani ka Or sukoon ka koi pal nahi Arey aaj 28/1/2021 Jisme khule raaste b jel se kam nahi ** dekho desh k har kone me kissan he Farq ek hi hisse p kyu he Dusro ko pareshan kark hum apna raasta to nahi bna sakte