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एहतेशाम MMA एमेच्योर (amateur) ग्रुप में 2019 के नेशनल चैंपियन हैं।

MMA दुनिया के उन खेलों में शामिल है जिसे फ्री स्टाइल नेचर की वजह से काफ़ी ख़तरनाक माना जाता है। यही वजह है कि दुनिया में इसके प्रसंशकों की सँख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। सच पूछें तो ये ताक़त और तेज़ दिमाग़ का ख़ेल हैं। ऐसे में आपको इस बात को समझना होगा कि जो लोग इसे अपने करियर के रूप में अपनाते हैं वो मानसिक तौर पर कितने मज़बूत और इरादों के पक्के होते होंगे।

एहतेशाम अंसारी उसी MMA दुनिया के उभरता सितारा हैं। झारखण्ड के सबसे पिछड़े जिलों में शामिल चतरा से आनेवाले इस होनहार खिलाड़ी के हौसले बुलंद हैं और हर एक बात जोश से भरा हुआ। चतरा में भले इस खेल में समझ रखने वालों और प्रसंशकों की सँख्या न के बराबर हो लेकिन इन सबसे दूर इस युवा खिलाड़ी का सोच काफ़ी आगे है। एहतेशाम बचपन से ही फाइटिंग के शौक़ीन रहे हैं। जहाँ कहीं भी कुश्ती या पहलवानी देखते बस देखते रह जाते। इस खेल में कैसे आए के सवाल पर बड़ी साफ़गोई से जवाब देतें हैं कि मैं MMA तो नहीं समझता था पर हाँ कुश्ती और पहलवानी नाम से मैं उत्साहित हो जाता था और बस यही मन करता कि यही मेरे लिए सबसे बेहतर ऑप्शन है।

एहतेशाम के अंदर बसने वाला फाइटर इसके उम्र के साथ-साथ बड़ा होता गया। जब इसने झारखण्ड राई यूनिवर्सिटी में बी-टेक की पढ़ाई के लिए दाख़िला लिया तब भी अंदर बैठा बॉक्सर अपने सही वक़्त के इंतज़ार में लगा रहा। बी टेक सेकण्ड ईयर में इस खिलाड़ी को मोराबादी मैदान में वुशू क्लासेस के बारे में पता चला। वह एक ऐसा मोड़ रहा जिसने इस युवा को MMA की दुनिया में पूरी तरह से खींच लाया। यही पर ट्रेनिंग के दौरान घायल हो गए और इन्हें हॉस्पिटल में भर्ती करना पड़ा। जब इनके पेरेंट्स को वहाँ पर बुलाया गया तब पहली बार उनके अम्मी अब्बू को पता चला कि उनका लाडला ऐसी जोख़िम भरा खेल खेलता है। निचे के शेर इन जैसे बुलंद हौसले वालों के लिए लिखा गया है।

"हार हो जाती है जब मान लिया जाता है

जीत तब होती है जब ठान लिया जाता है" -शक़ील आज़्मी

उनके घरवालों का क्या रिएक्शन था इसपर थोड़ा झिझकते हुए एहतेशाम ज्वाब देतें हैं कि पहले उनके परिजन काफी नाराज़ हुए और बी टेक की दुहाई देने लगे। इस खिलाड़ी के अंदर बसनेवाला MMA तभ बी शान्त रहा मगर मजबूती से खड़ा रहा। क्योंकि झारखण्ड में इस ख़ेल के लिए न तो कोई विशेष सुविधा उपलब्ध है और न ही इसके कोच। इसलिए एहतेशाम बी टेक में इंटर्न की ट्रेनिंग के बहाने दिल्ली आ गए और फिर नॉक आउट क्लब से जुड़ गए ताकि आगे का रास्ता बन सके और दुनिया के सामने अपने जज़्बा और ताक़त से उपस्तिथि दर्ज़ करा सके।

एहतेशाम एमेच्योर (amateur) ग्रुप में 2019 के नेशनल चैंपियन हैं और अब प्रो की दुनिया में अपनी एंट्री कर चुके हैं। इनके पिता रांची के पास तोरपा में बैटरी का व्यवसाय चलाते हैं। आगे का क्या प्लान है के सवाल पर थोड़ी मायुशि से ज्वाब देते हैं और फिर इस खेल से जुड़ी खर्चों पर सरपट बात करतें हैं। मेरे लिए ट्रेनिंग से ज़्यादा ज़रूरी है डाइट को बनाये रखना। क्योंकि मुझे इसमें लगने वाली कड़ी मेहनत में किसी के हौसला अफ़ज़ाई की ज़रुरत नहीं है। मेरे सामने सिर्फ MMA लिखा होना काफ़ी है मैं जोश और ऊर्जा से भर जाता हूँ। लेकिन अगर इसके डाइट की बात करूँ तो कई बार सोचना पड़ता है कि मुझे जल्दी से प्रो में उतरना चाहिए। साथ ही बड़ी उम्मीद भरी नज़रों से देखते हुए कहते हैं की अगर कोई स्पांसर मिल जाये तो अच्छा होगा। मैं अपना सौ फीसद देने के लिए तैयार हूँ। नहीं तो आगे की लड़ाई बड़ी मुश्किल भरा होनेवाला है।

मिडिल क्लास से होना कोई गुनाह तो नहीं है न ? लेकिन जब सुविधा की कमी से सपने मरने लगे तो कोसने के अलावा कुछ नहीं बचता। ऐसे होनहार युवा को एक अच्छा प्लेटफार्म देना ज़रूरी है ताकि दुनिया में भारत का नाम रौशन होता रहे। गांव,कस्बों से आनेवालों बच्चों की लड़ाई हमेशा से काफ़ी चुनौती भरा रहा है। ऐसे में सरकारों को ज़रूर सोचना चाहिए की इन उभरते सितारों को गैर सुविधा की नज़र न लगे। भारत में क्रिकेट ने बाकी खेलों को इतना बौना और बदरंग बना दिया है कि लोग बल्ले और गेंद की चमचमाती दुनिया से बाहर निकलना ही नहीं चाहते।

एहतेशाम एशिया में रैंकिंग रखतें हैं ऐसे में ज़रूरी है की स्पांसर उनकी और देखें। सरकारें ज़रूर तय करें की एक खिलाड़ी जब आधारभूत सुविधाओं और आवश्यक ख़ुराक की चिंता करता हो तो उसमें उनकी क्या भागिता होनी चाहिए?

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