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मैं  यूपी बिहार से हूँ , मैं किसान परिवार से हूँ 

मैं मजबूर हूँ साहब, क्योंकि मजदूर हूँ साहब 

 

मेरे बाबूजी परेशान थे, क्योंकि एक किसान थे

दिन भर खेतो में रहते थे, गर्मी धूप सब सहते थे 

 

अनाज वही उगाते थे, फिर भी भूखे सो जाते थे 

देख कर उनकी दीन दशा, कश्मकस में मैं फसा 

 

सोचा शहर मे काम करूँगा, बाबूजी का नाम करूँगा 

मैंने फैसला बिकट किया, फिर चालू का टिकट लिया 

 

मुझे दिहाड़ी काम मिल गया, सुनबे छोटू नाम मिल गया 

एक रोज महामारी आई, फिर पलायन की बारी आई 

 

शहर जैसे वीरान हो गया, मानो हमसे अनजान हो गया 

अपने ही  देश में भटक रहे थे, हर नाके पे अटक रहे थे

 

पुलिस से कोई बैर नहीं थी, लेकिन बॉर्डर पर ख़ैर नहीं थी 

दुखी थे हम ये कोई सैर नहीं थी, सरकारे भी गैर नहीं थी 

 

किस काम का जन-धन खाता, भूखे पेट रहा नहीं जाता 

सुविधाएँ हमसे मिलो दूर थी, घर भी हमारा कोसो दूर था 

 

मैं  यूपी, बिहार से हूँ , मैं किसान परिवार से हूँ.........  

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