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लाला से यहाँ किसी वर्ग या जाती को अंकित करना नहीं है बल्कि "लाला" गिरी का मतलब एक मंशा से है. जिसमें स्वार्थ को अहमियत दी जाती है, रास्ता कोई भी हो कैसा भी हो- लाला अपने धन अर्जन को सबसे आगे रखता है. "लाला" करैक्टर को हिंदी फिल्मों नें अलग अलग वक़्त पर पर्दे पर खूब दिखाया और वाहवाही भी बटोरी है. हम उन करैक्टर्स की भी बात नहीं करेंगे बल्कि हम बात करेंगे वर्तमान में योग को नई ऊंचाई देनेवाले बाबा रामदेव की. पिछले दिनों बाबा के एलोपैथ के खिलाफ़ बयान नें भारतीय मीडिया और IMA में भूचाल ला दिया. उसके बाद बाबा से नाराज़ एक वर्ग नें ट्वीटर पर मुहीम चलायी #लाला_रामदेव से. 

बाबा के लाखों फोल्लोवेर्स हैँ और जब भारतीय संस्कृति और योग पर बाबा कुछ बोलतें हैँ तो वो भारत में सुर्खियों का रूप ले लेती है. मेरे जैसे हज़ारो वैसे लोग भी हैँ जो बाबा को उनके योग के लिए नहीं बल्कि 2014 से पहले यूपीए सरकार में कांग्रेस के खिलाफ़ खुलकर बोलने वाले बाबा के रूप में जानतें हैँ. आर्थिक मामलों पर प्रत्येक दिन मसालेदार सलाह देने के लिए सुर्खियों में खूब आए. बाबा उन हस्तियों में शामिल हो गए जो सिर्फ योग-धर्म की बात नहीं करतें बल्कि रजनीति पर भी पैनी नज़र रखतें हैँ. वैसे में आम जन के लिए ऐसे व्यक्तित्व का उनके जीवन में स्थान काफ़ी ऊंचा हो जाता है. और आपको चारो दिशाओं का खेवैया मान लिया जाता है. 

लेकिन बाबा को समय की कसौटी पर मापे तो बड़ा उलझनों वाला व्यक्तित्व सामने निकलकर आता है. जब कांग्रेस केंद्र में आख़री सांसे ले रही थी तब बाबा बड़े एक्टिव थे और काले धन पर ऐसी ऐसी थ्योरी लेकर आते थे कि आपको वही सटीक लगता था. तब काला धन इतना गरमा गर्म मुद्दा था कि स्वतः ही लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेता था. बाबा के तब के बयान बतातें हैँ कि काला धन आने से पेट्रोल 30 रूपये प्रति लीटर मिलना चाहिए..... आज मोदी सरकार के सात वर्षों के साशन के बाद पेट्रोल भारत के इतिहास में सबसे महंगे दौर से गुजर रही है, और काला धन अब काला ही है या सफ़ेद हो गया कोई नहीं जनता....? क्योंकि पेट्रोल 30 के बजाए सैकड़ा को भी पार कर चूका है.... लेकिन बाबा काला धन मानो भूल गए हों और इस मुद्दे को तबतक संभालकर रखना चाहतें हो जबतक फिर से कांग्रेस सत्ता में वापिस न आ जाती है. ख़ैर सत्ता के मायाजाल और जनता के मूड में कब कौन फिट हो जाए ये कोई नहीं जानता इसलिए इसपर यहीं विराम देतें हैँ.... ऐसा प्रतीत होता है "काला धन" अभी सन बाथ करने में लगा है....इसलिए बाबा उसको सिर्फ निहार रहें और उसपर कुछ बोलना उचित नहीं समझते....इसमें कोई बुराई भी नहीं दीखता. बाबा हमारे मनमुताबिक कार्य करें ज़रूरी नहीं फिर सामने से ऐसा भी तर्क आ सकता है कि हम बाबा के अनुसार चलें ये भी ज़रूरी नहीं...ये भी सही है. कम से कम संविधान का हवाला देकर ऐसा तो कर ही सकते हैँ.

उसी दौर में बाबा एक और ज़बरदस्त थ्योरी लेकर आते थे और उनके झोला से हर मंच पर यहीं निकलता था कि बड़े नोट "न बाबा न" तब बाबा तर्क देते थे कि 500 और 1000 के नोट होने ही नहीं चाहिए बड़े नोट मतलब बड़ा घोटाला बड़ा चोरी... क्योंकि इनको आसानी से कम जगह पर ज्यादा छिपाया जा सकता है... तर्क में काफी दम है इसलिए आपके दिमाग में ये  बात घर कर जाती है...लेकिन 7 वर्षों में मानो ये तर्क चल चल कर घिस गई है इसलिए अब इसपर कोई शोर शराबा ही नहीं है... इसके उलट अब 500 और 1000 के बदले भारत में 2000 के नोट हैँ. मतलब जहाँ पहले जिस संदूक में 1 लाख छिपाया जा सकता था उसी संदूक में अब 2 लाख छिपाया जा सकता है. लेकिन बाबा में चुप्पी है यहीं वो विशेषता है जो उनके व्यक्तित्व को जटिलता प्रदान करता है.

पता नहीं कौन से योग का असर है कि बाबा फिर से सुर्खियों में बने हुए हैँ लेकिन इसबार तारीफ के बदले उनको खरी खोटी ज्यादा सुनना पड़ रहा है. आजतक न्यूज़ चैनल पर IMA के एक डॉ. साहब नें बाबा से जिस टोन में बात कि मैं पक्का बता सकता हुँ शो में बाद बाबा को अनुलोम विलोम करना पड़ गया होगा.

बाबा के और भी किस्से हैँ जिसकी सत्यता पर मैं मुहर नहीं लगाता शायद इसलिए किस्से कह रहा हुँ.....उनमें से एक है जाने माने पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी जी से जुड़ा हुआ. जिसमें लोग मानतें हैँ कि "थर्ड डिग्री" कार्यक्रम के दौरान प्रसून जी के तीखे सवालों पर बाबा को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने आजतक से इस पत्रकार को नौकरी से ही निकलवा दिया....

व्यक्तित्व के धनी बाबा यहाँ भी रुकते नहीं दीखते बल्कि कहतें हैँ कि एलोपैथ को सर्जरी और इमरजेंसी के अलावा सारा काम आयुर्वेद को दे देना चाहिए... इसके उलट उनके सबसे नजदीकी बालकृष्ण जब बीमार पड़ते हैँ तो उनका इलाज़ सबसे बड़े और  महंगे हस्पताल में एलोपैथ पद्दती में करवातें हैँ.

बाबा जब ऐसे विचार रखतें हैँ तो हजारों के मन में ये भी ख्याल आता होगा की एलोपैथ पद्दती में विकसित कोरोना की वैक्सीन कितनी विश्वसनीय है...?. आशंका की स्तिथि में लोग वैक्सीन से दूर भाग सकतें है. लोगों में पहले से ही वैक्सीन के नाम पर दसों गलतफहमीयां हैँ और ऐसे वक़्त पर लाखों के फोल्लोवेर्स के मुख से एलोपैथ पर प्रश्न चिन्ह कहीं और ग़लतफहमी न बढ़ा दे? शायद यही वजह है कि IMA बाबा के खिलाफ देश द्रोह जैसे कठोर धारा के तहत कार्यवाही चाहती है. 

वैसे में जानता मतलब "मैंगो मैन" बड़ा अहापौह में है कि बाबा कि माने या खुद की. मेरी माने तो आम का सीजन है... इससे ज्यादा इसपर विचार कीजिए कि आम चूसकर खाया जाए या काटकर. ये मसला ज्यादा खतरनाक है. 

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