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मदरसे में छड़ी से तशरीफ़ को लाल कर देने वाले मौलवी साहब को शिक्षक दिवस पर सम्मान के साथ अभिवादन।स्कूल में स्वेटर बुनते रहने वाली टीचर को भी "हैप्पी टीचर्स डे" और ब्लैक बोर्ड के सामने खड़े होकर नाक में उंगली घुमाते रहने वाले शिक्षक को भी "हैप्पी टीचर्स डे"। हर क्लास  के पहले लोटा भर पानी मंगवाकर गटगट एक सांस में पी जाने वाले शिक्षक को भी "हैप्पी टीचर्स डे" बात-बात पर बुड़बक कहने वाले शिक्षक को भी "हैप्पी टीचर्स डे"। 

आईएएस बनकर लाल बत्ती में घूमने वाली दुवाएँ देनेवाले शिक्षक को भी "हैप्पी टीचर्स डे" और बैल की तरह "मुण्डी हानते हो" कहनेवाले शिक्षक को भी "हैप्पी टीचर्स डे"। 

हम सबके साथ ऐसी अनगिनत यादें होंगी जो ज़िन्दगी के अलग-अलग मोड़ पर जुगरे और ज़ेहन में हमेशा के लिए बस गए।  कुछ गुदगुदाने वाली, कुछ गुस्साने वाली और कुछ ऊर्जा से भर देनेवाली। ऊपर के फ़ेहरिस्त में हो सकता है कि कॉन्वेंट स्कूलों में पढ़ाई करनेवाले हमारे किसी साथी के टीचर्स का कोई रूप न हो। 

लेकिन इससे क्या? शिक्षक तो शिक्षक होतें हैं। हम पूरी ज़िन्दगी एक अच्छे शिक्षक को ढूँढ़ते रहतें हैं कभी बॉस के रूप में तो कभी यू ट्यूब चैनल के रूप में।  कभी किसी नेता के अंदर तो कभी किसी अभिनेता के अंदर।   

शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार के वेबसाइट पर 2015 -16 के अनुसार भारत में प्राइमरी शिक्षकों की संख्या 26 लाख 6 हजार 120 बतायी गई है जबकि अप्पर प्राइमरी शिक्षकों कि सँख्या 26 लाख 12 हज़ार 347 है।  वहीं सेकेंडरी स्तर पर इनकी संख्या 14 लाख 31 हजार 591 है जबकि सीनियर सेकंडरी स्तर पर 20 लाख 41 हजार 864 है। उच्च शिक्षा के लिए 15 लाख 18 हजार 813 है।  (संख्या में किसी तरह की त्रुटि के लिए माफ़ी )

आप सोच रहें होंगे कि शिक्षकों कि संख्या बताने का क्या मक़सद है।  जनाब ये आपको फैसला करना है और देखना है कि शिक्षकों की संख्या भले वो सरकारी ही क्यों न हों को किस-किस ने बताया। किस-किस मतलब है कोई नेता, कोई टीवी चैनल, जो सुबह ये तो बता देतें हैं कि आज आपका दिन कैसा बीतेगा लेकिन कभी ये नहीं बताते कि शिक्षकों की असली दुनिया कितनी बड़ी है। कितना खूबसूरत है या यही की कितना बदसूरत है। मुझे लगा आप रोज-रोज शुशांत सिंह राजपूत और रिया चक्रवर्ती से जुड़ी ख़बरों को देखकर बोर हो गए होंगे इसलिए कुछ नया बता दूँ।  लेकिन बिना मसाला कहाँ स्वाद आता है। अच्छा  ये विषय ऐसा है कि इसमें क्या मसाला लगायें।  

लेकिन है, मसाला है इसमें। तालाबंदी के दौरान अनगिनत निजि शिक्षकों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा।  अच्छा उनकी माह की तनख़्वाह इतनी भी नहीं थी की वो कुछ ज्यादा जोड़ पाएं हो भविष्य के लिए। अच्छा थोड़ा रुकिए मसाला लगाने की कोशिश कर रहा हूँ। इनमें से अनेकों को बिना बताए ही निकाल दिया गया। अब इनको  शिक्षा जैसे लाइन से जुड़ने के बाद दूसरा कोई काम समझ ही नहीं आ रहा है। आपको इसमें भी मसाला नहीं दिखा तो और बताता हूँ। आज दिल्ली के एफएम रेडिओ पर अलग़-अलग़ आर.जे. ने कुछ वैसे शिक्षकों से बात की जो आम ज़िन्दगी जीते हुए सराहनीय कार्य कर रहें हैं। उनमें एक तो एकदम ही नासमझ दिखे नौकरी चली गई है और अब बैग बेचते हैं दिन में, और रात में अपने पसीने की कमाई से मोबाइल रिचार्ज करवाते हैं ताकि ज़रूरतमंद बच्चों को ऑनलाइन क्लास दे सकें।  अजीब हैं न मोबाइल रिचार्ज करके चीखते चिल्लाते एंकर को भी तो देखा जा सकता है। आख़िर उनको टी आर पी भी तो चाहिए। 

मसाला और भी है, स्कूल ग्रुप में टीचर्स बच्चों के पैरेंट्स से ऐसे फीस जमा करवाने की गुहार लगा रहें है की न देने पर स्कूल मालिक नौकरी ही खा जायेगा।  बेचारा माता पिता भी क्या करे काम धंधा भी तो नहीं है।  टीवी भी तो रिचार्ज करवाना है ताकि सीबीआई कहाँ तक पहुंची कैसे पता चलेगा? नार्को में कौन सा नशा आया ये कैसे पता चलेगा? मुंबई "पोक" बन गया है ये कैसे पता चलेगा।

इसको और मसालेदार बनाते हैं, जन धन खाता है तो सरकार ने जो पैसा आपके अकाउंट में लगाया था उसका मैसेज शायद आ गया होगा आपको।अगर आप किसान हैं तब भी कुछ पैसे खाते में आये होंगे।  भाई साहब चुनाव और उसमें वोटर बिदकने का रिस्क नहीं ले सकतें हैं। टीचर्स का क्या है ? कहाँ जायेंगे धारणा देंगे तब भी देख लेंगे और  नहीं पढ़ाएंगे तब भी देख लेंगे। यू ट्यूब है न ?

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