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एम्बुलेंस के साईरन और हॉस्पिटल के आस पास मचा अफरा तफ़री आपको हैरान,परेशान और मायूस कर देगा. आपके रोंगटे खड़े कर देगा और आप शायद अपने आप से सिर्फ इतना ही बोल पाएंगे की ईश्वर हमें इस मंजर से बचा. आखों में आँसू और चेहरे पर सितम लिए लोग, इनकी गलती सिर्फ इतनी है कि ये आम लोग हैँ और ये अपनी उँगलियों के बल से नेताओं को खास बनाते हैँ. रोते, चीखते और चिल्लाते परिवारों को सिर्फ वो सुविधाएँ चाहिए जिसका वो हक़दार हैँ. किसी को कोरोना की दवाई चाहिए, किसी को हॉस्पिटल में एडमिशन चाहिए तो किसी को ऑक्सीजन की सुविधा. वेंटीलेटर कि सुविधा मिल जाना शायद अभी ज़िन्दगी कि सबसे अमूल्य चीजों में शामिल है. ये वो लोग हैँ जो पीढ़ी दर पीढ़ी भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करतें आये हैँ. चिलचिलाती गर्मी में भी वोट किया, कड़ाके की ठण्ड में भी और छत्री पकड़े घंटों लाइन में लगकर भी ताकि हमारे नेता को चुना जा सके. नक्सली ग्रस्त इलाकों में इन नेताओं को वोट करने के लिए ये आम लोग कभी गोलियां खायी तो कभी किसी के गले को काट तक दिया गया.

ये सब किस लिए ताकि नेता जी चमचमाती कपड़ों में सजे मंच से दोनों हाथों को जोड़ हमारा अभिवादन स्वीकार कर सकें?किस लिए ताकि हेलीकाप्टर से आंधी के माहौल में उतरे और तूफानी भाषण देकर वापिस अपने आलिशान बंगलों में लौट जाए? किस लिए ताकि उनको इन्ही अस्पतालों में VIP ट्रीटमेंट मिले और हम सड़कों पर युहीं दम तोड़ते रहें? उनके लिए एयर एम्बुलेंस और आम लोगों के लिए दमतोड़ लम्बी लाइन? उन वोटों का क्या जिसको लोकतंत्र में सबसे ताक़तवर कि संज्ञा दि गई है? नाखून पर लगी नीली स्याही हमें जो आस देती है उसका क्या? आम आदमी को हॉस्पिटल में बेड क्यों नहीं मिलना चाहिए? घुटन में ऑक्सीजन क्यों नहीं मिलनी चाहिए?

हमने दशकों से इस देश के लोकतंत्र को इसलिए मजबूत किया है ताकि मुसीबत में दवाई कि कालाबाजारी हो और ऑक्सीजन निर्यात तो किये जाए लेकिन आम लोगों को नसीब न हो?

किस लिए ताकि लॉकडाउन कि स्तिथि में हम भूखे मरते रहे? कौन देगा ज्वाब? चुनावी रैली में भीड़ इकठ्ठा करने के लिए जो नेताजी ट्रेन कि ट्रेन बुक कर देतें हैँ वही नेता जी आज एक बेड क्यों नहीं दिलवा सकते. एक एक vote लेने के लिए कभी कैश तो कभी शराब कि लालच देनेवाले नेताजी आज कोरोना कि दवाई क्यों नहीं दिलवा सकते?

टीवी पर लम्बे लम्बे लच्छे दार भाषण देनेवाले नेताजी आज हस्पतालों के बाहर रोते बिलखते परिवारों को कान्धा क्यों नहीं दे सकते? जिसके लिए आप इतना भारी भरकम फूल का माला बनवाते हो कि उठाने के लिए दर्जन भर आदमी कि ज़रुरत पड़ती है उस नेता जी को आपकी इतनी भी फ़िक्र नहीं है कि शमशानों और कब्रिस्तानों में आम आदमी को अंतिम संस्कार कि सुविधा मिल जाए.

एक साल का उचित वक़्त मिला जब हमारे नेता और सरकारें कोरोना के खिलाफ लड़ाई कि तैयारी कर सकते थे... लेकिन उन्होंने चीजों को गंभीरता से लिया ही नहीं और सिर्फ इस तैयारी में लगे रहें कि चुनाव कैसे जीता जाए? आज जब कोरोना दुबारा से लोगों कोअपने चपेट में ले रहीं हैँ तो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र घुटनों के बल मायुश इधर उधर देख रहा है.

और नेताजी अपने आलिशान ज़िन्दगी में मशगूल हैँ.......

क्योंकि नेताजी को पता है....ये आम आदमी है, सब भूल जाता है.

 

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