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अगर आप ख़ुद को बहुत हँमुख मानतें हैं तो भी सोचिएगा और खुद को बहुत गंभीर मानतें हैं तो भी सोचिएगा। विचारों से परिपक्व मानते हैं तो भी सोचिएगा और खुद को भावुक मानते हैं तो भी सोचिएगा। #arrestrhea मुहीम का हिस्सा हैं तो भी सोचिएगा और #bharatforkangana मुहीम का हिस्सा हैं तो भी सोचिएगा। 

BARC ( ब्रॉडकास्ट ऑडिएंस रिसर्च कौंसिल इंडिया ) का साप्ताहिक रिपोर्ट बताता है कि हिंदी न्यूज़ चैनल्स में "रिपब्लिक भारत" सबसे ज्यादा देखा जा रहा है।  वहीं दूरसे पायदान पर "आज तक" है। ये अगस्त के आख़िरी हफ़्ते का रिपोर्ट है।  लेकिन सच्चाई ये है कि आज भी स्तिथि कमोबेश यही है। BARC का अगला वर्ग है "हिंदी न्यूज़ ग्रामीण" उसमें भी "रिपब्लिक भारत" टॉप पर है और "आज तक" दूरसे नंबर पर। BARC का अगला वर्ग है "हिंदी न्यूज़ शहरी यानि अर्बन" यहाँ भी "रिपब्लिक भारत" सब पर भारी दीखता है और एक नंबर पर है।  वहीं "आज तक" दूरसे नंबर को कसके पकड़ा हुआ है।    

हम ब्लॉगर के साथ एक दिक्कत है शायद किसी भावना में बहकर कुछ एकतरफ़ा न लिख दें।  सिलिए थोड़ी मेहनत आप भी कीजिए और आज भी इस दोनों चैनल्स पर चलने वाले सबसे अहम् ख़बर को देखिये पता चल जायेगा की कैसे टी आर पी और आपकी नब्ज़ दोनों को एक डोर से बाँध दिया गया है। रिया चक्रबर्ती  को जितना उनके माता-पिता, भाई, दोस्त, रिश्तेदार और ख़ुद रिया नहीं जानती होगी उससे कुछ ज़्यादा जानकारी चीखते चिल्लाते एंकर ने आपतक पहुंचा दिया होगा।  

एक एंकर ने तो नशे के अलग-अलग़ वर्ग को इतना ज़ोरदार तरीक़े से अपने हाथों को नचाते हुए रखा की दर्शक थोड़े देर के लिए घबरा गए की क़िरदार में दिखने के चक्कर में कहीं नशा करके ही न आ गया हो? दर्शकों ने इस विषय को इतना भाव दिया और टीवी से चिपक कर बैठ गए कि एंकर और मालिक दोनों खुश हो गए और इस विषय को ऐसे रखने लगे की भारत में यही एकमात्र समस्या है जिसका समय से पहले हिसाब हो जाना चाहिए नहीं तो सबकुछ तहस नहस हो जायेगा।  माइनस में जा रही इकोनॉमी तभी उठ पायेगी जब शुशांत सिंह राजपूत को इन्साफ मिल जायेगा। अच्छा उससे भी मज़ेदार चीज़, मांग करते दिखे सीबीआई जाँच की फिर साथ में ये भी तो सोचना चाहिए कि इस एजेंसी का एक औसत समय क्या है किसी केस पर अंजाम देने का?  यह हास्यास्पद है कि दर्शकों को बन्दर नाच दिखाया जा रहा है और दर्शक मदारी पर आँखे टिकाए बैठा है की अगला पैतरा क्या होगा ? फिर "एंकर मदारी" दिखाता है कि बन्दर के मुँह से जूँ निकला जी, किसके सिर से ये नहीं पता। 

रिया और सुशांत की ख़बर को देखेंगे तो ऐसा लगेगा कि पुरुष प्रधान समाज किसी सदमे में है और जल्दी से बदला चाहता है।  कोर्ट कानून सब ताक पर।  और ऐसा उकसाने वाले को बड़ा भारी पत्रकार कहा जा रहा है।  अक्सर चैनल्स पर देखेंगे रिया और सुशांत से जुड़ी ख़बर घंभीरता दिखा रहा होगा लेकिन स्क्रीन पर लगाई गई तस्वीर एकदम ग्लैमरस ताकि दर्शक टीवी के अंदर घुसने तक की कोशिश कर ले।  टीवी चैनल्स ने लोगों को इतना कन्विन्स कर लिया की लोग ट्विटर पर #arrestrhea चलाने लगे थोड़े देर में यह संख्या लाखों में चला गया।  फिर क्या माने मीडिया ट्रायल से ही मुज़रिम का फैसला हो जाना चाहिए? लोगों को रिया की जलेबी वाली क़िरदार ज़हर लगने लगा।  

हमारा लोकतंत्र दिन-ब-दिन पुराना होता जा रहा है इसलिए नए नए रूप भी दिखा रहा है। कंगना रनौत को जब शिव सेना ने धमकी दे डाली तो वही लोग जो रिया को जेल भेजना चाह रहे थे एकदम से कंगना के साथ आ गए और इसबार पुरुष प्रधान समाज का विराट रूप दिखा।  एक महिला को सुरक्षा मिलनी ही चाहिए पर मुहीम चलाने लगे।  जल्दी ही Y प्लस वर्ग का सुऱक्षा दे भी दिया गया।  ऐसे में जो वर्ग रिया के साथ पेशी के लिए जाते वक़्त हो रहे धक्का मुक्की से दुखी थे वो भी उनकी सुरक्षा की मांग करने लगे।  इसी पुरुष प्रधान समाज ने कंगना के सपोर्ट में ट्वीटर पर मुहीम चलाया #महराष्ट्र_का_CM_नंपुसक है।  ब्लॉग लिखे जाने तक 1 लाख 16 हज़ार ट्वीट हो चुके थे।  जिस व्यक्तित्व को कभी शेर के रूप में परोसा जाता था उसका तो सबकुछ ही बदल दिया।  कंगना के ऑफिस पर BMC ने इतनी जल्दी कार्यवाही की कि ऐसा प्रतीत हुआ की मुंबई की सारी समस्या इसी मज़िल के दीवारों में बसती थी।इसलिए जल्दी से ढहा ही दो। रज्जो ने भी मुख्या मंत्री तक तो तू तड़ाक लहज़े में वीडियो रिकॉर्ड करके ट्वीट कर दिया। बड़ा हस्य्स्पद है ये सबकुछ।  मीडिया ने फिर लोगों के नब्ज़ को पकड़ा और इसे ऐसे प्रस्तुत करने लगे की कोरोना की लड़ाई बाद में पहले कंगना।  रिपोर्टर अपनी फुर्ती के चक्कर में एक डाकिया को ही पकड़ लिया।  खुश तो वो भी होगा पुरे भारत में लोगों ने उस डाकिया को टीवी पर देखा जो रोज बेचारा चिठ्ठियों के बीच खुद को उलझा हुआ पाता था। 

ऐसे में बेचारा बेरोज़गार #9बजे9मिनट वाली मुहीम पर मुँह फुलाये बैठा ही की कोई तो दिखा दो।   

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