
- मोहम्मद असलम
- 28 Apr 2021
- 2M
- 3
बहुत हुआ सम्मान!
नेताजी एक जगह भाषण दे रहे थे, तभी चोंगे से आवाज़ आयी देश को 5 ट्रिलियन वाली इकोनॉमी बनाऊंगा. यह बात नेताजी के अलावा और किसी को समझ ही नहीं आ रही थी. सबने गूगल बाबा से संपर्क किया तो इनकी आँखें खुली कि खुली रह गई एक के बाद ज़ीरो ख़त्म ही नहीं हो रहा था. सबने ज़ोरदार तालियां बजायीं नेताजी पहले घबरा गए थे सन्नाटा देखकर फिर बड़े खुश हुए तालियों कि गड़गड़ाहट से.
सुबह अख़बारों के पहले पन्ने को ज़ीरो ज़ीरो से भर दिया गया... टीवी एंकर सबसे चमकदार महंगेवाला सूट बूट निकालकर तैयार हो गए रिसर्च टीम से ज़ीरो की गिनती मांग ली गई किसी ने हथेली पर तो किसी ने मोबाइल का स्क्रीन सेवर उतने ही ज़ीरो से अपडेट कर दिया. घंटो बहस करवाये गए विपक्ष पुराने स्टाइल में इसका विरोध करती रही और कैसे संभव है पर टिकी रही. एंकर इसको गंभीरता से लेना वाज़िब नहीं समझा और विपक्ष को दूरदुरा दिया.... दर्शकों को भी विपक्ष की ये बात पसंद नहीं आयी और उनको विपक्ष की भूमिका ख़ूबसूरत चाँद पर धब्बे की माफ़िक दिखा...यानि नज़रबट्टू.
बेचारा विपक्ष खुद को समझा ही नहीं पा रहा था कि क्या करूँ? हाँ बोलूं तो विपक्ष काहे को न बोलूँ तो जनता नकारात्मक कहती है... बड़ा अहापौह...बड़ी मुश्किल से मुद्दा शांत हुआ.
नेताजी बड़े तेज़ तर्रार थे... किसी ने लोकतंत्र के मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरजाघर यानि संसद भवन में वार्तमान में बेरोजगारी कि समस्या पर सवाल पूछ लिया? नेताजी पकौड़े के बड़े शौक़ीन थे और उन्हें इस बात का अंदाजा था कि देश में पकौड़े तलने वालो कि संख्या रेलवे के कर्मचारियों से कई गुना ज्यादा है... नेताजी ने बताया कि क्योंकि पकौड़ा तलना भी एक रोजगार है वैसे में बेरोजगारी पर सवाल ही गलत है. नेताजी के पीछे बैठी पूरी जमात ने ऐसी तालियां बजायी मानो लाखो युवाओं को जोइनिंग सर्टिफिकेट बाटा गया हो. इस बीच सभी चाय के साथ पकौड़ा भी खाते रहे...विपक्ष को पसंद था पास्ता इसलिए वो पकौड़े की बात को मानने को तैयार ही नहीं हुए... मुद्दा महीनों चलता रहा मीडिया डेली तेल खौलकार पकौड़े सेकती रही. विपक्ष हताश निराश काउंटर करता रहा...
देश में बड़ा अच्छा माहौल बना हुआ था लोग पकौड़े खाते खाते 5 ट्रिलियन में कितने ज़ीरो याद कर रहे थे तभी पड़ोसी देश से ख़बर आई कोरोना नाम के वायरस कि... जो आगे चलकर सर्वव्यापी महामारी का रूप धारण कर लिया..नेताजी तक बात पहुंची कुछ दिन देखते रहे फिर एक दिन बोले जो जहाँ है वही रहेगा ताकि वायरस को रोका जा सके... यानि पूर्ण रूप से तालाबंदी. शुरू में सात दिन था फिर बढ़ते बढ़ते तीन महीने तक चला. फिर से मीडिया बौराई और दनादन नेताजी कि तारीफ में कैसीदें पढ़ने लगे. विपक्ष फिर बौखलाता हुआ ग़रीब मजदूरों कि बात उठाने लगा बोलने लगा इनके रोजगार का क्या... इनके खाने पीने का क्या....? मुख्य मीडिया से ज्यादा सोशल मीडिया ने लोगों के भूख प्यास और उनकी बदहाली को दिखाया.... नेताजी काफी एक्टिव दिखे और तरह तरह के जादू मंतर करतें रहे.... लाइट गई हांथी गायब, रुमाल डंडे से निकाला तो फूल बन गया. नेताजी अपनी ताक़त को अच्छे से समझते थे तो लोगों को बोले कि आज थाली बजाओ सबने थाली बजायी फिर बोले ताली बजाओ सबने ताली बजायी.... फिर बोले बत्ती बुझाओ सबने बुझा दी.
एंकर अपने अपने बिल से निकले औऱ इन सबके पीछे का राज बताने लगे....ध्वनि ऊर्जा से कैसे कोरोना भाग जायेगा... अँधेरे में घबरा जायेगा. वैसे ही जैसे नोटबंदी के वक़्त उसमें चिप ढूँढा गया था मानो गाँधी जी उसे लिए बैठें हैँ औऱ तकनीकी मामला संभाल रहें हैँ.
बहते आंसुओं के बीच लोगों ने एकता दिखाई एक दूसरे का मदद किया... कुछ हद तक इस जख्म से लोग उभरने लगे थे. चीजें सामान्य होने लगी थी इन सब को देख नेताजी गदगद थे औऱ अपना पीठ खुद भी थपथपा रहे थे औऱ दुसरो से तालियां भी बटोर रहे थे...दुनिया कि दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाले इस देश में महामारी चुनौतियाँ लेकर आयी थी लेकिन हमारी व्यस्था औऱ सरकारों ने इसे एक चुनाव कि तरह लिया. जनता को मुर्ख बनाओ औऱ प्रचार में खूब पैसे लुटाओ जीते तो ठीक नहीं तो अगली बार फिर प्रचार.
बाज़ार में रंगत आना शुरू ही हुआ था कि महामारी का दूसरा दौर आया. ये इतना भयावह था कि लोगों ने शमशानों औऱ कब्रिस्तानों से रेपोर्टिंग शुरू कि ताकि वास्तविक स्तिथि कि गंभीरता को समझा जाए.... नेता जी चुनाव के आदि थे इसलिए तबतक चुनाव प्रचार करतें रहे जबतक पानी सिर के ऊपर से बहना शुरू न कर दे ... इस बीच विपक्ष इस समस्या कि संभाविक गंभीरता से अवगत करवाता रहा लेकिन हरबार कि तरह विपक्ष को दूरदुरा दिया गया. चौथे पिलर मीडिया के प्रमुख ग्रुप्स ने फिर से विपक्ष कि बात को दूध भात वाली भूमिका का नाम देते रहे.
एंकर बिल से जब भी अपना मुखड़ा बाहर निकालते तो नेताजी कि भाषण को वैसे ही परोसते जैसे अभी तक करतें आये थे...
चाटुकारिता कि इस व्यवहार ने नेताजी को अपनी जिम्मेदारियों से दूर रखा औऱ आज उसकी भरपाई लोग सड़को पर अपनों को मरते बिलखते देख कर चूका रहें हैँ.
जिस देश को 5ट्रिलियन इकोनॉमी बनानी थी वहाँ ज्यादातर ग़रीब जनता को आधारभूत सुविधाएँ भी नहीं मिल पा रही. लोगो के बीच हस्पताल में बेड पाने औऱ ऑक्सीजन पाने कि ऐसी होड़ मची है जो ना मिला तो पता नहीं कितनी ज़िन्दगीयों को बेवक़्त लील जायेगा...आज दुनिया भर के राष्ट्र प्रमुखों ने हमारी मदद क़ी बात कही है. कोई ऑक्सीजन तो कोई दवाई से मदद करने को हाथ बढ़ा रहा है...लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ क़ी नाकामी ने ऐसी अपूर्णिय क्षति दी है जो शायद आने वाली पीढ़ीयों को सबक दे जाए...
लेखक के बारे में
मोहम्मद असलम, पत्रकारिता से स्नातक हैं। सामाजिक घटनाक्रम और राजनीतिक विषयों में रूचि रखतें हैं। इनके ज्यादातर लेख सोशल मीडिया घटनाक्रम पर आधारित होतें हैं। इसके साथ ही एमबीए डिग्री धारक हैं और एक निजी बैंक में सीनियर मैनेजर के पोस्ट पर कार्यरत हैं।
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