Updates

(दाऊद खान दक्षिण एशिया के130 खिलाडियों में pro. Bantamweights में 23 वें स्थान रखतें हैं और Flyweight में 14 वां स्थान )

घरों में, कारख़ानों में मजदूरी करके पसीना बहाना कोई शौक तो नहीं लेकिन अगर उस पसीने से ज़ेहन में  पलने वाला सपना फलता फूलता हो तो आप इसे क्या कहेंगे ? जी हाँ जुनून।  दाऊद जूनून का पर्यावाची शब्द बन चुकें हैं।  बचपन से कुश्ती और अखाड़े में रूचि रखनेवाले इस नौजवान की कहानी किसी को भी आकर्षित कर सकती है।  नौवीं कक्षा में फ़ैल होने के बाद दाऊद खान पढ़ाई की दुनिया से दूर चले गए लेकिन MMA Pro. की दुनिया का ऐसा सपना पाला जो पथ्थर से भी कठोर तो है लेकिन ऐसा भी तो नहीं है न कि पथ्थर के चट्टान को तोड़ा नहीं जा सकता।  दुनिया ऐसे उदाहरणों से अटी पड़ी है जहाँ लोगों ने पथ्थर को तराश कर उसपर अपने सपने लिख दिए फिर दुनिया में वो स्थायी उदाहरण बन गई।  

दाऊद खान जब पहली बार MMA क्लब का रुख़ किए तो उस दुनिया में होने वाले ख़र्च ने इस जवान के हौसले पर चोट तो किया लेकिन वो इतना भी धारदार नहीं था कि सपने को चकनाचूर कर दे। इनका परिवार आर्थिक रूप  से इतना सामर्थ्य नहीं थे कि घर चलाने के अलावा इनके खान पान को और आवश्यक फीस को पूरा कर सकें।  

लेकिन इस जवान को इस बात से ज़्यादा शिकायत नहीं है।  वो हालात को समझतें हैं और ज़िन्दगी से शिकायत करने के बजाय उससे लड़ने और उसको बेहतर बनाने के लिए जद्दोज़ेहद कर रहें हैं।  इनकी ट्रेनिंग जारी रहे इसके लिए पैसा बीच में रुकावट न बने इसके लिए उन्होंने अर्बन क्लैप में AC मैकेनिक का काम शुरू कर दिया।  लेकिन ये काम इतना थका देने वाला था कि इनकी ट्रेनिंग में रुकावट पैदा करने लगा।  फिर दाऊद खान  ने इस काम को भी छोड़ दिया और MMA क्लब से कुछ दुरी पर स्थित नेहरू प्लेस मार्किट में स्कूल और लैपटॉप बैग बेचना शुरू कर दिया।  हर आते जाते को आवाज़ लगाते "बैग ले लो, बैग ले लो" उनकी मेहनत रंग लायी और इतना पैसा कमाने लगे कि अपने आवश्यक ख़ुराक को पूरा कर सके और साथ ही क्लब का फीस भर सकें।  

दाऊद खान बतातें हैं कि चार घंटे की कड़ी मेहनत के बाद वो हर  रोज़ मुश्किल से 300 -400 रूपये बना लेते थे।  इससे उनका अपना ख़र्च तो निकल ही जाता था।  और ये हर रोज़ का सिलसिला बन गया।  अब ये जवान बैंगलोर में ट्रेनिंग ले रहें हैं ताकि  MMA Pro. की दुनिया का विजेता बन सकें और दुनिया में भारत का नाम रौशन कर सकें।  क्योंकि वहां के हालात अलग हैं इसलिए बैग तो नहीं बेच सकते लेकिन बड़ी मुश्किल ले एक क्लब में ट्रेनर की नौकरी ढूंढ पाएं हैं जिससे शहर में रहने का ख़र्च उठा सकें।  

बातों-बातों में दाऊद खान  बतातें हैं कि ऐसे कई मौके आये जब खली पेट सोना पड़ा।  बड़ी अजीब है न जिस देश की पूँजी यहाँ की जवान पीढ़ी है उसी में कई नौजवान अपने सपनों के लिए इतने संघर्ष रत हैं कि खाने की कमी तक से गुजर रहें हैं।  ऐसे में नेताओं और सरकार के वो सुनहरे वादे बड़ा बेस्वाद वाला और बदरंग लगता है।  

आज ज़रुरत है कि संस्थाएं इस नौजवान और ऐसे हजारों युवाओं का सहारा बने।  उनके सपने मरे इससे बुरा भला और क्या हो सकता है किसी भी व्यक्ति और राष्ट्र के लिए?

जिस देश में  क्रिकेटर पानी का बोतल का प्रचार करके करोड़ों कमा लेते हैं उसी देश में MMA जैसे ख़तरनाक खेल में देश का नाम रौशन करने का सपना लिए एक जवान ख़ुराक और ट्रेनिंग की लड़ाई लड़ रहा हो इससे दुःखदायी भला क्या हो सकता है?

ये हमारे इस समाज और सिस्टम के लिए:-  

ख़्वाब ही ख़्वाब कब तलक़ देखूं 

काश तुझ को भी इक झलक देखूँ - उबैदुल्लाह अलीम 

(मोहम्मद दाऊद खान से हुई बात चीत का कुछ हिस्सा आप सीधे सुन भी सकतें हैं

You Might Also Like

5 Comments

Leave A Comment

Don’t worry ! Your email address will not be published. Required fields are marked (*).

Featured

Advertisement