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11मार्च 2017 को राजनीतिक लिहाज से कई मायने में याद रखा जायेगा।आज उत्तर प्रदेश, पंजाब, गोवा, उत्तराखंड और मणिपुर में विधानसभा चुनावों के परिणाम आए हैं। कई मायनों में मजेदार भी है और कई मायने में चिंताजनक भी। मजेदार उनके लिए है जिन्होंने कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देखा है और चिंताजनक उनके लिए जिन्हें मजबूत लोकतंत्र चाहिए और एकवाद में भरोसा नहीं करते। एक विशेष समुदाय बहुल राज्य द्वारा सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस की ओर आशा भरी निगाहों से देखना। दूसरी तरफ़ एक समुदाय विशेष को केंद्र में रखकर राजनीति करने वाली भाजपा की ऐतिहासिक जीत। ऐसी जीत, जिसकी उम्मीद न तो राजनीतिक पंडितों ने की थी और न ही उत्तर प्रदेश और पंजाब जैसे विविधताओं से भरे प्रदेश से इसकी इसकी क़यास लगाई जा सकती थी। लेकिन लोकतंत्र के यही मायने हैं जहाँ जनता की ताक़त को कभी भी कमतर नहीं आंकना चाहिए।

उत्तर प्रदेश जैसे बड़े प्रदेश के सामने पंजाब के परिणाम बौने लगते हैं लेकिन किसी भी लिहाज से इसको नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। क्योंकि ये वही प्रदेश हैं जहाँ २०१४ के चुनावों में मोदी लहर के बावजूद अरुण जेटली जैसे व्यक्तित्व को हार का मुँह देखना पड़ा था। यानी इस समुदाय विशेष की तीसरी आँख कुछ कह रही है। भाजपा आजकल एक नारा देने में लगी है वो है " कांग्रेस मुक्त भारत " यह कब हो पायेगा इसे मोदी-अमित जी के अलावा कोई नहीं बता पायेगा।एक बात समझने वाली है, क्या वजह है कि भाजपा कांग्रेस मुक्त भारत बनाने में लगी है? क्या इसलिए कि भारत की क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियां भाजपा को आनेवाले समय में राष्ट्रीय स्तर पर टक्कर नहीं दे सकती? और भाजपा इकलौती राजनीतिक पार्टी बन जाएगी जो सारे फैसले अपने मन मुताबिक ले पायेगी? ध्यान रहे इस पार्टी के एक नेता यहाँ तक बोलते हैं कि कब्रिस्तान में दफनाने की प्रथा गलत है क्योंकि करोड़ों की जनसँख्या को उतनी जमीन कहाँ से दी जाएगी ? मैं उस धूर्त बयान पर कुछ भी बोलना मुनासिब नहीं समझता। लेकिन ये उस राजनीतिक पार्टी की विचारधारा है जो कांग्रेस मुक्त भारत के लिए अग्रसर है। कांग्रेस ने अपने साठ सालों के राज में मुसलमानों के लिए वैसा कुछ भी नहीं किया जिसे सराहनीय माना जाए। नहीं तो भारत के मुसलमानों की स्थिति आज उतनी बदतर भी नहीं होती जितनी है।

भाजपा कांग्रेस मुक्त भारत का कैसा रूप रखना चाहेगी ये समझना ज़रूरी है। उस कांग्रेस मुक्त भारत में लगभग 18 करोड़ आबादी वाले मुसलमानों की भूमिका क्या होगी? ये जानना इसलिए ज़रूरी है, क्योंकि यह वही राजनीतिक पार्टी है जिसने उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में किसी मुसलमान को टिकट देना बेहतर तक नहीं समझा।जिस राज्य में इस समुदाय की जनसँख्या 2011 के जनगणना अनुसार लगभग 4 करोड़ है।

एक साक्षात्कार में अमित शाह किसी भी मुस्लिम कैंडिडेट को टिकट न देने के सवाल पर बड़ी सफाई से उत्तर देते दिखे। उनका मानना है कि सबका साथ सबका विकास विधायक बनने से नहीं होता। बहुत लोगों को ये जवाब बड़ा तर्क वाला दिख सकता है लेकिन मुझे बड़ा हास्यास्पद लगता है। भाजपा मुस्लिम प्रवक्ता रख सकती है लेकिन 4 करोड़ आबादी वाले राज्य में एक मुस्लिम विधायक नहीं बना सकती। क्योंकि प्रवक्ता पार्टी चेहरा के तौर पर मुसलमानों में सन्देश देने का काम करता है। लेकिन विधायक के तौर पर प्रसाशनिक शक्ति देने पर इनके चेहरे उतर जाते हैं। लोकतंत्र का यह रूप भी बहुत खूबसूरत है।

दूसरी तरफ कांग्रेस अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। पुत्र मोह और चापलूसी की ऐसी इंतेहां है इस पार्टी में कि चुनाव हारने के बाद पार्टी के लोग उस व्यक्ति को हार के लिए जिम्मेदार तक नहीं मानते जो पूरे चुनाव को अपने दम पर लड़ते दिखते हैं। मैं उस युवा व्यक्ति से भी बड़ी उम्मीद रखता हूँ और आशा करता हूँ कि वो अपनी ईमानदारी को बनाये रखें और अपनी कुशलता पर काम करें। वो विदेशी नहीं हैं वो एक भारतीय युवा हैं। " 13 मार्च 2017 चुनाव परिणाम के तुरंत बाद "

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