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बिहार चुनावी रंग में रंग चूका है।  मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो ऐसा लगता है बिहारियों पर तेजस्वी का रंग गहराता जा रहा है। आठवीं पास तेजस्वी के पास न तो कोई बहुत ज़्यादा राजनीतिक अनुभव है न हि कोई ऐसी करिश्माई काम याद आता है जिससे युवाओँ  में तेजस्वी की इतनी बोलबाला हो। तेजस्वी बिहार के जाने माने पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के छोटे पुत्र ज़रूर हैं। इसपर भी विवाद है कि तेजस्वी बड़ा है या तेज प्रताप।  क्योंकि 2015 में पहली बार ये बात चर्चा में तब आई जब हलफनामे में तेजस्वी की उम्र तेज प्रताप से एक साल बड़ा दिखाया गया था। लेकिन यही वो सच्चाई भी है जिसको विरोधी दल भुनाना चाहते हैं और लालू के राज को "जंगल राज" बता कर इस युवा को उससे जोड़ दिया जाता है ताकि दावेदारी कमज़ोर पड़ जाए। 

इस साधारण से व्यक्तित्व वाले युवा में बिहारी युवाओं को क्या दिख सकता है ? एक तरफ 15 सालों से मुख्यमंत्री का ताज़ पहने नितीश जैसा साफ़ सुथरा व्यक्तित्व  है दूसरी तरफ़ चुनाव जीतने की सारी कलाओं में माहिर राजनीतिक दल भाजपा है। ऐसे में ये भीड़ वोटों में कितना तब्दील होगी इसकी चिन्ता कहीं न कहीं तेजस्वी को भी होती होगी।  लेकिन कम से कम चुनावी रैलियों में तो "लालू के लाल" ने सबको पटखनी दे रखी है। चुनावी सभाओँ में युवाओं का इकठ्ठा होना फिर तेजस्वी की हर बात पर जोश भरा हुँकार भरना बड़ा रोचक है। इसकी शुरुआत तब हुई जब आरजेडी ने बेरोजगार युवाओं के नब्ज़ पर हाथ रखते हुए एक डेडिकेटेड ऑनलाइन पोर्टल लाई जिसका मक़सद युवाओं को ज़्यादा से ज़्यादा जोड़ना था।  बाद में इसी दल ने ये भी बताया कि मात्र 9 दिनों में पाँच लाख युवाओं ने खुद को रजिस्टर्ड भी करवाया है। ये संख्या दिन ब दिन निश्चित ही बढ़ गई होगी। तेजस्वी की इस शुरुआत ने बिहार की चुनावी राजनीति को पुरे तरीके से रोजगार की ओर मोड़ दिया जो कि अच्छा संकेत है।  आखिर कबतक पाकिस्तान और क़ब्रिस्तान पर चुनाव लड़ा जाता रहेगा।  

2014 में जब मोदी ने सलाना दो करोड़ रोजगार और काले धन के घर वापसी पर 15 लाख देने की बात की थी तब भी लोगों ने उसका जबरदस्त स्वागत किया था।  अभी उस वादे का विश्लेषण नहीं करते हैं लेकिन एक बात तो साफ़ है  भोली-भाली जनता अपना भला चाहती है।  रोजगार चाहती है, भले नेता हर बार उन्हें ठगते रहें हों।  बहुत सारे वीडियो में ये सुनने को मिल रहा है कि तेजस्वी युवा हैं और एक चांस तो बनता है।  मतलब नितीश से लोगों को ऊबन होने लगी है और उन्हें अब विकास की लिस्ट में सड़क के अलावा नौकरी, डॉक्टर वाले हस्पताल और अच्छी शिक्षा वाले स्कूल कॉलेज चाहिए।  वैसे भी कुछ रिपोर्ट के मुताबिक नितीश  की बनाई सड़कें अब फिर से उबड़ खाबड़ होने लगी हैं और उसके मरम्मत पर सरकार चुप्पी साधे है।      

जो लोग देश में बेरोगारी को मुद्दा नहीं मानते उन्हें बिहार से आ रही युवाओं के टीवी बाइट्स देखना चाहिए। इसके महत्त्व को आज भाजपा और नितीश कुमार से बेहतर कोई नहीं बता सकता। यही वो सर दर्द है जिसने सुशासन बाबू और उसके सहयोगी को परेशान कर रखा है और जिसकी दवा मिल भी नहीं पा रही है।  तेजस्वी ने इसी दर्द को माथे पर उठाया है और जगह-जगह लोगों को उससे  रूबरू करवा रहें हैं। और यही वजह है कि भीड़ रिस्पांस कर रही है।  

सत्ता पक्ष ये सब देख परेशान है। नितीश कुमार एक रैली में खिसियाते भी दिखे और सामने की भीड़ से साफ़-साफ़ बोल दिया "वोट देना है तो देना" भीड़ से आ रही लालू रावडी ज़िंदाबाद के नारे  की आवाज़ में ये प्रतिक्रिया दी गई थी। नितीश कुमार बिहार के कद्दावर नेता हैं और "सुशासन बाबू" नाम से जाने जाते हैं इसके बावज़ूद ये चुनाव उनके लिए सिरदर्द बना हुआ है।  कहीं उनके उम्मीदवार तो कहीं उनके मंत्रियों तक को जनता ने खदेड़ दिया है। 

मिथिला से NDTV ने एक रिपोर्ट किया है जिसमे गाँव वालों ने पोस्टर तक लगा दिए हैं कि "नेताओं का गाँव में प्रवेश निषेध है"  मानों नेता नहीं धूम्रपान हैं और सेहत के लिए हानिकारक हैं।  नितीश कुमार ने अपने राजनीतिक करियर में भले जितनी भी इज़्ज़त कमाई हो लेकिन वक़्त-वक़्त पर स्वार्थी चेहरा भी दिखाया है। 2015 का चुनाव इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। नितीश कुमार ग्रेजुएट हैं और धन दौलत के मामले में भी साधारण हैं काफी।  लेकिन चुपचाप बिहार पर राज करते रहने की नीति भी तो सही नहीं है नहीं तो 2015 के विधानसभा परिणाम का अपमान तो नहीं ही करते।  वो भी बिना किसी विशेष कारण के।  जिस पार्टी ने उनके डीएनए पर सवाल उठाया था उसी से साल भर बाद लिपट गए  जो उनके कुर्सी पर बने रहने की लालसा को उजागर करता है।  सिर्फ सादापन से कुर्सी पर नहीं बैठे रह सकते नहीं तो त्रिपुरा के मुख्यमंत्री तो इसके सबसे अच्छे उदाहरण बन जाते।  वेस्ट बंगाल पर ममता राज ही नहीं कर पाती।  

बिहारियों ने तब और भी बुरा माना होगा जब नितीश ने दस लाख नौकरियों की संभावना और  उसपर आनेवाले खर्च को बड़ा असंभव बता दिया।  तेजस्वी और भी खुश होंगे नितीश के इस निराशावादी जवाब से।  क्योंकि उनके नकारात्मक जवाब ने ये साबित कर दिया कि बिहार को एक नए चेहरे की दरकार है।  इस मुद्दे पर भाजपा ने घी डालने का काम किया है और दो कदम आगे बढ़कर 19 लाख रोजगार देने का चुनावी वादा कर दिया।  इसका ये मतलब है कि नितीश ने जो खर्चे वाली बात कही थी और दस लाख नौकरियों वाला राजद के एलान को बेतुका बताया था उसमें काफी दम है। नितीश अगर यह बात नहीं समझ पा रहें हैं कि बिहार में 46% बेरोजगारी है जो कि देश में सबसे ज्यादा है तो उसके जिम्मेदार भी वही हैं।  मतलब आपने ही विपक्ष को उनके थाली में गरमा-गर्म मुद्दा परोसा है।  

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