
- मोहम्मद असलम
- 21 Sep 2020
- 2M
- 4
मैं भी दिल्लीः- फ्री बिजली और फ्री पानी से ज्यादा ज़रूरी है "फ्री ट्रैफिक" दिल्ली
दिल्ली मतलब सरकार। दिल्ली मतलब नेताजी। दिल्ली मतलब पॉवर। दिल्ली मतलब भीड़-भाड़। दिल्ली मतलब भाग-दौड़। दिल्ली मतलब जामा मस्ज़िद। दिल्ली मतलब क़ुतुब मीनार। दिल्ली मतलब लाल किला। दिल्ली मतलब कनॉट प्लेस। दिल्ली मतलब जी वी रोड। दिल्ली मतलब लाजपत मार्केट। कुछेक के लिए दिल्ली का मतलब मिर्ज़ा ग़ालिब है तो कुछेक के लिए दिल्ली यानी "पुरानी दिल्ली" कुछेक के लिए दिल्ली यानी वो शहर जो अलग अलग राजाओं से उनके स्वादानुसार छली जाती रही है। कुछेक के लिए दिल्ली परांठे वाली गली है तो कुछेक के लिए दिल्ली "धंधा" है। दिल्ली मतलब "बहन चो.."
दिल्ली के अनगिनत रूप हैं। उन्हीं रूपों में एक रूप "सड़क पर रेंगती दिल्ली" है।
तुम्हें तो बड़ा गुमान है न दिल्ली कि तुम राजधानी हो। घमण्ड राजनैतिक ताक़त का। घमण्ड आर्थिक ताक़त का। घमण्ड भीड़-भाड़ का। घमण्ड इस बात का कि कश्मीर से कन्यकुमारी और गुजरात से अरुणाचल तक के लोग तुम में बसतें हैं। घमण्ड सबके जुड़ जाने वाली लालसा का। तुम्हें गुमान है न दिल्ली की तुम्हारे पास संसद है, तुम्हारे पास सुप्रीम कोर्ट है। तुम-तुम हो। गुमान "दिल्ली" होने का। तुम्हारे पास मानवाधिकार है, तुम्हारे पास संसार के राष्ट्रों के दूतावास हैं। गुमान ही गुमान, घमण्ड ही घमण्ड।
मुझे तुम्हारी घुमान और घमण्ड में सड़क पर रेंगती बेबसी दिखती है। तुम बदबूदार हो। बबदु धुआँ का। बदबू सड़ी हुई यमुना का। तुम बदसूरत हो। बेबस लोगों को सड़कों पर रहने के लिए मज़बूर करती हो और अमीरों को अट्टालिकाओं में उतनी जग़ह देती हो जहाँ पूरी बारात बैठ सकती है लेकिन कोई अकेला बैठे ठहाका लगाता है। तुम कन्फ्यूज्ड हो तुम्हें पता ही नहीं की तुम कहीं "वाहन में बसती हो या वाहन तुममे बसती है"
तुम जो ये ताक़त लेकर बैठी हो उसका सिर्फ बेजा इस्तेमाल ही तो दीखता है। तुम महलों में कहीं ग़ुम हो गई हो। तुम राजनीति में कहीं बिला गई हो। ये सारी बातें झूठ है तो मैं साबित कर देता हूँ तुम बेबस हो। तुम कमज़ोर हो। तुम समस्याओं से भागती हो। तुम सड़क पर चलने में घबराती हो, इसलिए कहीं महलों में छुपी रहती हो।
तुम सड़क पर एम्बुलेंस तक को जग़ह नहीं दे पाती। अन्दर कराहता मरीज और उसका शुभचिंतक बस यही सोच रहा होता है कि कैसे भी हॉस्पिटल पहुँच जाये। इसलिए हमने तुम्हारी बेबसी को "रश ऑवर" नाम दिया है। अंग्रेजी नाम है खुश हो जाओ दिल्ली। अँग्रेजी तो पसंद है न तुम्हें। कोई कामकाजी आदमी को अगर "रश ऑवर" में किसी मुसीबत में घर जाना पड़ जाए तो तुम मुँह बनाए महलों से झांकती रहती हो और वो बेचारा भारी दिल से हॉर्न बजाता रहता है और झूठी आश्वासन देता रहता है कि अब पहुंचा अब पहुंचा। जब कोई अपने दफ़्तर से घर के लिए निकलता है तो बस यही दिमाग में चलता रहता है कि आज पता नहीं कितना टाइम लगेगा।किसी को बर्थ-डे पार्टी में लेट हो जाता है तो किसी को बीवी के साथ डिनर में शामिल होने में देरी हो जाती है। कोई अपनी अकेली माँ के लिए भागता हुआ पहुँचना चाहता है तो कोई इस डर से कि उसका बच्चा सो न जाए। नहीं तो कल सुबह भी जल्दी निकलना पड़ा तो उसके साथ खेल भी नहीं पायेगा। सब उतने भाग्यशाली नहीं हैं दिल्ली की मन मर्जी से सबकुछ होता हो। हर रोज करोड़ों का तेल बस ऐसे ही फूंक देती हो दिल्ली, बिना एक कदम आगे बढ़े। गरीबों को इससे सहारा दे देती तो पुण्य मिलता लेकिन तुम्हे पुण्य कमाकर करना भी क्या है? तुम्हारी महलों तक मुसीबत पहुँचने से डरती भी तो होगी दिल्ली।
अब भी तुम्हें गुमान है दिल्ली?
"द इकोनॉमिक टाइम्स" के एक रिपोर्ट के मुताबिक़ मार्च 2018 तक एक करोड़ नौ लाख 86 हज़ार से ज़्यादा वाहन दिल्ली में हैं। जिसमें से 71 लाख के क़रीब दो पहिया वाहन हैं और 32 लाख 46 हजार से ज़्यादा कार और जीप हैं। वहीं 1 लाख 13 हज़ार से भी ज़्यादा ऑटोरिक्शॉ हैं। दिल्ली हर शाम, हर सुबह ये एहसास दिलाती है कि ट्रैफिक एक बहुत ही बड़ी समस्या है। लेकिन किसी राजनीतिक दल के मेनिफेस्टो में इस समस्या का न तो ज़िक्र है और न ही समाधान के कोई आश्वासन। दिल्ली दुनिया में ट्रैफिक समस्या के मामले में चौथे पायदान पर है। फ्री बिजली और फ्री पानी से ज्यादा ज़रूरी है "फ्री ट्रैफिक दिल्ली" हम तो मैंगो मैन हैं साहब इतनी सी ख़्वाहिश है।
लेखक के बारे में
मोहम्मद असलम, पत्रकारिता से स्नातक हैं। सामाजिक घटनाक्रम और राजनीतिक विषयों में रूचि रखतें हैं। इनके ज्यादातर लेख सोशल मीडिया घटनाक्रम पर आधारित होतें हैं। इसके साथ ही एमबीए डिग्री धारक हैं और एक निजी बैंक में सीनियर मैनेजर के पोस्ट पर कार्यरत हैं।
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Assu
Potential enthusiastic stunning dynamic unbeatable panned down dear
Bipin
Achha h delhi.